बीते 7 साल से भूखों को रोजाना खाना खिला रहे है अजहर मकसुसी
हैदराबाद में फ्लाईओवर के नीचे थालियां और चटाई लेकर रोजाना एक शख्स बेघरों, भिखारियों, कचरा बीनने वालों और मजदूरों को इंतजार करता है. बीते 6 सालों से एक दुबला-पतला आदमी 12.30 बजते ही इन लोगों की थालियों में गरम-गरम चावल और दाल परोसना शुरू कर देता है.
इस शख्स का नाम है. सैयद उस्मान अजहर मकसुसी. जो पिछले सात साल से भूखों और जरूरतमंदों की भूख मिटाना अपनी जिंदगी का मकसद बना चुके है. चार साल की उम्र में ही सिर से पिता का साया उठ जाने के पाद खुद भूखे रहने की पीड़ा झेल चुके अजहर हर भूखे का पेट भरने की हर मुमकिन कोशिश करते है.
इसी फ्लाईओवर के नीचे छह साल पहले एक दिन उन्हें एक बेघर औरत मिली थी. जो भूख की वजह से तड़प रही थी. 36 साल के अजहर ने उस वाकये को याद करते हुए कहा, “लक्ष्मी भूख से छटपटा रही थी. वह विलख-विलख कर रो रही थी. मैंने उसे खाना खिलाया और तभी फैसला किया कि मेरे पास जो सीमित संसाधन है उससे मैं हरसंभव भूखों की भूख मिटाऊंगा.”
शुरुआत में उनकी पत्नी घर में ही खाना पकाती थी और वह फ्लाईओवर के पास खाना लाकर भूखे लोगों को परोसते थे. बाद में उन्होंने वहीं खाना तैयार करना शुरू कर दिया. इससे किराये की बचत हुई. अजहर ने कहा, “शुरुआत में 30-35 लोग यहां होते थे मगर आज 150 से ज्यादा हैं, जिन्हें मैं रोज खाना खिलाता हूं. अजहर की एक संस्था है जो अब इस काम का संचालन करती है. संस्था का नाम है ‘सनी वेल्फेयर फाउंडेशन’। संस्था ने खाना पकाने के लिए दो रसोइयों को रखा है.”
फाउंडेशन कुछ एनजीओ के साथ मिलकर बेंगलुरु, गुवाहाटी, रायचूर और तांदुर शहर में रोजाना आहार कार्यक्रम का संचालन करता है. अजहर को खुशी है कि जो काम उन्होंने अकेले शुरू किया था आज उसके साथ कारवां सज गया है और अनेक लोग और संगठन उनके काम से प्रेरित हुए हैं.
अजहर कहते हैं, “आज आप देख सकते हैं कि शहर में कई जगहों पर अनेक लोग मुफ्त में खाना बांटते हैं. अजहर को इससे अपनी कामयाबी का अहसास होता है. हालांकि उनका मानना है कि सपना तभी साकार होगा जब इस देश से और दुनिया से भूख मिट जाएगी. भूख नाम की कोई चीज नहीं होनी चाहिए.”
अजहर को सबसे बड़ी प्रेरणा उनकी मां से मिली. वह मानते हैं कि अल्लाह ही गरीबों के लिए उनके मार्फत भोजन की व्यवस्था करता है. अजहर ने कहा, ‘मैं यह नहीं देखता कि कौन खाने को आ रहा है. मैं बस यही जानता हूं कि सभी भूखे हैं. यही उनका ठिकाना है. दाने दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम.’