चौपाल परिवार की ओर से आज का प्रातः संदेश
साथियों:आज हर सनातनधर्मी कैसा भी हो , वह अंत में मोक्ष की ही कामना करता है।जिसके लिए शास्त्रों में बताये गये उपायों के अतिरिक्त भी तमाम साधन साधता है। बड़े बड़े अनुष्ठान करवाता है। यज्ञों में यजमान बनता है।फिर भी उसका मन नहीं भरता है।वह सोंचता है और क्या कर लूँ जिससे कि मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो।तमाम लोगों ने मोक्ष के लिए गृहस्थाश्रम का त्याग तक कर डाला।परंतु जो करना चाहिए वह नहीं कर पाये।करना क्या चाहिए ???? यहाँ आपको सिर्फ अपने मन को साधना है बस और कुछ भी नहीं करना है।मोक्ष की व्यवस्था में एक गृहस्थ का क्या भविष्य है? और क्या उसे मोक्ष की प्राप्ति के लिए संन्यासी हो जाना चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि यदि आप मन को साध लें तो फिर भले आप गृहस्थ हैं, वानप्रस्थी हैं या संन्यासी, आपको मोक्ष मिल जाएगा। यह एक मानसिक अवस्था है कि आप सोचते हैं कि मैं गृहस्थ हूं और वो संन्यासी है।वास्तव में यह एक विचार है जो आपका पीछा करता है। यदि आप गृहस्थ धर्म त्याग कर संन्यासी बन जाएं और जंगल में चले भी जाएं तो भी यदि आपने मन को नहीं साधा है तो यह जंगल में भी आपको गृहस्थ बनाए रखेगा। आपका मन आपके अहंकार का स्रोत है। वही तय करता है कि आप बाहर से भले कुछ हों, अंदर कैसे विचार रखेंगे! ऐसे में मनुष्य का प्रयत्न होना चाहिए कि वह मन को साध ले। कोई मनुष्य भले ही संसार का त्याग कर संन्यासी बन जाए, फिर भी यदि विचार नहीं बदला तो जंगल भी घर हो जाएगा, जबकि यदि विचार बदल गया तो घर में रहकर भी संन्यास की साधना की जा सकती है। वास्तव में सच्चाई यह है कि वातावरण के परिवर्तन से क्षणिक सहयोग मिल सकता है, लेकिन यदि आपके मन में चलने वाले विचार नहीं बदले, मन का अवरोध नहीं टूटा तो चाहें घर पर हों या जंगल में, कभी भी सच्ची साधना नहीं हो सकती।सच्ची साधना करने के लिए कहीं भी नहीं जाना है।कबीरदास जी लिखते हैं,मन की तरंग मार लो , बस हो गया भजन।मन को साधो वही सच्ची साधना है।
सभी चौपाल प्रेमियों शुभ प्रातः वन्दन।
आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बडागाँव-फैजाबाद
श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830