अपने ही बुने जाल में फंसी सपा, अखिलेश को सताने लगी मुस्लिम वोटरों की चिंता

समाजवादी पार्टी को पिछली बड़ी खुशी 7 साल पहले 2012 विधानसभा चुनाव में जीत के बाद मिली थी। इसके बाद पार्टी का हर चुनाव में ग्राफ गिरता गया और 2019 आते-आते पार्टी अपने अस्तित्व को लेकर जूझती नजर आ रही है। लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया। इस गठबंधन से सपा को तो कोई फायदा नहीं हुआ पर बसपा को जरूर हो गया। और 2014 के लोकसभा में 0 पाने वाली पार्टी इसबार 10 पर पहुंच गई।
समाजवादी पार्टी के मुखिया प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अब मुस्लिम वोट बैंक की चिन्ता सताने लगी है। बसपा से गठबंधन टूटने के बाद दोनों ही पार्टियों के परपरागत वोटर अपनी पार्टी के साथ वापस चले गए।
मुस्लिम वोटरों पर दोनों ही पार्टियों की नजर है। कहा तो यह भी जा रहा कि अखिलेश यादव प्रदेश में होने वाले उपचुनाव से पहले मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व संगठन को मजबूती से आगे बढ़ाएंगे।
मुस्लिम वोटरों को लेकर पार्टी प्रमुख का डर जायज है। लोकसभा चुनाव में गठबंधन किया और मायावती के खाते में 10 सीटे चली गई और खुद पिछले चुनाव की तरह इस बार भी 5 सीटों पर ही टिके रहे उसमें भी कन्नौज जैसी परंपरागत सीट भी हार गए। उपचुनाव में अगर मुस्लिम वोटर बसपा की तरफ चले जाते हैं तो पार्टी के सामने खासी मुसीबत हो जाएगी। सपा इस चुनाव को 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारी के रुप में ले रही है।
चुनाव परिणाम आने के कुछ दिन बाद ही विदेशी दौरे पर निकल गए अखिलेश यादव ने अब जाकर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की है। और 12 सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर रणनीति बनाई है। बनी रणनीति को जल्द ही जमीन पर उतारने की कोशिश मे लगी पार्टी को अब बसपा और भाजपा की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। ज्यादातर सीटों पर पार्टी का भाजपा से सीधा मुकाबला है।
मुस्लिम वोटरो को लेकर मायावती ने तो अखिलेश को उसी समय कटघरे में खड़ा कर दिया था जब उन्होंने कहा कि अखिलेश ने उन्हें कम मुस्लिमों को टिकट देने के लिए दबाव बनाया। साथ ही उन्होंने अखिलेश के नेतृत्व को लेकर सवाल खड़ा कर दिया और कहा कि सपा का तो अपने ही पंरपंरागत यादव वोटरों पर भी अब नियंत्रण नहीं रहा उसमें भी भाजप ने सेंधमारी कर दी। फिलहाल मायावती के इस बयान के उलट देखा जाए तो यादव वोटरों का बड़ा खेमा आज भी खुद को समाजवादी बनाए हुए हैं।
