भगवा योद्धाओं ने गुटबाजी के हथियार से किया प्रियंका को बेटिकट…..

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कृष्ण कुमार द्विवेदी

बाराबंकी : बाराबंकी में लोकसभा के टिकट को लेकर भाजपा के धुरंधरों ने निवर्तमान सांसद को टिकट ना मिले इसके लिए एक साजिशी लंका तैयार कर डाली थी! भगवा टोली के इन घाघो ने ऐसा हथियार चलाया कि प्रियंका रावत बेटिकट हो गई। जबकि जैदपुर के विधायक उपेंद्र रावत टिकट पाने में कामयाब हो गए। चर्चा यह भी है कि पुरुषवादी मानसिकता के भगवा नेताओं को एक महिला सांसद शुरू से ही नहीं पच रही थी? फिलहाल कहीं खुशी और कहीं गम माहौल है। जब कि लोकसभा के चुनाव का गणित लगभग अब साफ हो चला है?बाराबंकी में भाजपा की टिकट को लेकर आज सारी स्थिति एकदम से स्पष्ट हो गई ।भाजपा नेतृत्व ने मौजूदा सांसद प्रियंका रावत का टिकट काटकर के उनके स्थान पर जैदपुर के विधायक उपेंद्र रावत को लोकसभा का प्रत्याशी बनाया है ।जैसे ही यह खबर बाराबंकी में आम हुई। राजनीतिक दरबारों में अलग-अलग चर्चाओं का दौर प्रारंभ हो गया। विश्व सूत्रों के मुताबिक सबसे ज्यादा खुशी मौजूदा सांसद प्रियंका रावत के उन भगवा विरोधियों में थी जिन्होंने उनका टिकट कटवाने में अपनी पूरी ताकत लगा दी थीं। चर्चा हैं यह वही भगवा धुरंधर है जिन्होंने काफी समय पहले से ही जनपद में कार्यकर्ताओं के बीच एक माहौल बनाना प्रारंभ कर दिया था कि यदि प्रियंका को टिकट दोबारा दिया गया तो वह चुनाव में नहीं जीत पाएगी। इनमें वे भी नेता है जो प्रियंका रावत के सांसद बनने के बाद उनके अगल-बगल परछाई के रूप में दिखाई दिया करते थे। निवर्तमान सांसद का कार्यकर्ताओं से सीधे न जुड़ना भी उनके लिए परेशानी का सबब बना!उन्होंने प्रारंभ में विधानसभा स्तर के नेताओं को ही सब कुछ माना जिसके चलते उनका कार्यकर्ताओं से सीधा संबंध नहीं बन पाया।भगवा सूत्रों के मुताबिक मौजूदा सांसद ने उन भाजपा के धुरंधर नेताओं पर ज्यादा भरोसा किया जो वास्तव में उनके विश्वास के लायक ही नहीं थे। जहां तक उनके विरोध का जो सबसे बड़ा कारण रहा वह यह रहा कि उनका प्रभाव जिला प्रशासन पर भाजपा सरकार के बनने के बाद काफी तेजी से बड़ा था! जबकि पूर्व की सपा सरकार में भी प्रियंका का जलवा कहीं कम नजर नहीं आता था! यही नहीं भाजपा के कुछ नेताओं को यह बात हमेशा कचोटती रहती थी कि महिला नेत्री सांसद होने के चलते उन पर कहीं न कहीं भारी नजर आ रही हैं ।पूर्व में प्रियंका रावत के द्वारा तत्कालीन जिलाधिकारी अखिलेश तिवारी के एवं प्रशिक्षु आईएएस अजय द्विवेदी से पंगा हुआ वह काफी चर्चित रहा। उनका ए एसपी को खाल उतारने की धमकी देना ऐसे कई कृत्य थे जो उनकी दबंग छवि को सिद्ध कर रहे थे। कई भाजपा के कार्यकर्ताओं का कहना है कि श्रीमती रावत ने जब भी नौकरशाही से पंगा लिया तो उन्होंने कार्यकर्ताओं के लिए ही लिया।सांसद का टिकट कटा इसके लिए भाजपा के कई पूर्व एवं वर्तमान विधायकों ने भी खूब प्रयास किए। यही नहीं जिला संगठन के कई पदाधिकारियों ने भी उनकी राह में कांटे दर कांटे बिछाए ।सूत्रों का दावा है कि साजिशों का दौर ऐसा आगे बढ़ाया गया कि संगठन से नेतृत्व ने विकल्प भी मांगे थे ।खबर यह भी है कि जैदपुर के विधायक उपेंद्र रावत के विधायक बनने में प्रियंका रावत का खासा सहयोग रहा है। तो वहीं दूसरी ओर हैदरगढ़ के विधायक बैजनाथ रावत भी मन ही मन यह लड्डू खा रहे थे कि काश लोकसभा का टिकट छटक कर उनकी गोदी में आ गिरे ? इसके अतिरिक्त बछरावां के विधायक राम नरेश रावत अपनी पत्नी श्रीमती सरोज रावत को टिकट दिलाने में दिन रात एक किए हुए थे ।यही नहीं कुछ अन्य चर्चाएं भी थी कि फला पार्टी के एक बड़े नेता अपनी बहू को टिकट दिलवाने के लिए परेशान हैं।सूत्रों के मुताबिक भाजपा के सभी विधायकों की आंखों में अगर कोई किरकिरी था तो वह थी प्रियंका रावत ।कयास लगाया जा रहा है कि भाजपा में जिला स्तर के नेता के रूप में प्रियंका का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था उनके द्वारा
कराए गए कई विकास कार्य भी खासे चर्चित हुए जैसे पर्यटन विभाग के द्वारा तीर्थ स्थलों का विकास करवाना एवं कई सड़क मार्ग बनवाए जाना।प्रियंका रावत के टिकट को निपटाने के लिए भाजपा के कई वर्तमान विधायकों ने उन पर जातिवाद तक के आरोप लगाए। वैसे इसमें सारी गलती प्रियंका की विरोधियों की नहीं थी कुछ गलतियां स्वयं उनकी भी थी। कार्यकर्ताओं से सीधा ना जुड़ना, जनता के बीच समय ना देना, अपनों को 5 वर्ष में ना पहचानना, तथा स्वयं अपना नेटवर्क ना तैयार करना भी कहीं न कहीं उनकी राजनीतिक कमियों में शुमार किया जायेगा। सच यह भी है कि भाजपा के कई ऐसे वरिष्ठ नेता थे जिन्होंने प्रियंका को बेटिकट करने के लिए सब कुछ किया। कुछ तो ऐसे नेता थे जिन्होंने उन्हें अपशब्दों से भी नवाजा ।उनके ख़िलाफ़ नेतृत्व को जांच कराए जाने के लिए ज्ञापन तक दिए ।कुल मिलाकर जिन चुने गए विधायकों के चुनाव में प्रियंका दौडी वहीं विधायक उनके लिए दौड़े तो लेकिन उन्हें टिकट दिलाने के लिए नहीं बल्कि उनका टिकट कटवाने के लिए? रणनीति के तहत पहले सांसद प्रतिनिधियों को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया उसके बाद उनके विरुद्ध एक माहौल का निर्माण किया गया !जिस की धमक केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंचाई गई। उधर दूसरी ऒर विधायक उपेंद्र रावत टिकट पाने में कामयाब हुए। श्री रावत ने पारस महासंघ संगठन में काम करते हुए सजातीय रावतों एवं दलितों के लिए बहुत काम किया हुआ है। उपेंद्र रावत चूँकि रावत बिरादरी से आते हैं इसलिए उनको टिकट मिलने के बाद राम सागर रावत जो कि सपा के प्रत्याशी हैं उनके कान खड़े होना लाजमी है ।ऐसी स्थिति में जब उन्हें टिकट मिला है तो वह प्रियंका को साथ लेकर चलते हैं या फिर प्रियंका विरोधी भगवा टोली को आगे करके चलते हैं यह तो अभी आने वाले समय में ही स्पष्ट हो सकेगा।यह उनके लिए चुनौती भी है। लेकिन यह चर्चा भी बहुत तेजी से बाराबंकी की भाजपा में बढ़ी है कि पुरुषवादी मानसिकता के नेताओं ने एक महिला सांसद के साथ जो किया वह अच्छा नहीं किया है। कुल मिलाकर बाराबंकी लोकसभा चुनाव पर सभी की नजरें गड़ गई हैं। जबकि कांग्रेस के लोग ऐसी स्थिति को अपने लिए बहुत ही अच्छा मान रहे हैं। कांग्रेसियों का विश्वास बढ़ चला है कि उसे दो रावतों की भिड़ंत में जीत का रास्ता तय करने के लिए अब सुविधा ही रहेगी । कुछ ऐसा ही कहना सपा एवं बसपा महागठबंधन के नेताओं का भी है। उधर खबर मिली है कि प्रियंका रावत फिलहाल अपनी अगली भूमिका के लिए भाजपा नेतृत्व के निर्देश का इंतजार कर रही हैं ।उनके करीबी सूत्रों का कहना है कि प्रियंका रावत का यह मानना है कि उन्हें जो कुछ मिला है भाजपा से मिला है इसलिए वह पार्टी संगठन के साथ हैं! स्थितियां यह भी दर्शा रही है कि बाराबंकी में टिकट कटिंग प्रकरण के बाद अब भाजपा के धुरंधर एक दूसरे को कैसे निपटाये इसकी कूट साजिशे भी तेज हो गयी हैं?

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