अवधी’ को अब एक नई मंजिल की ओर लेकर निकला है अवध का ‘रमेशवा’
[खबर हिन्दुस्तान की]
गोण्डा(यूपी) ! अवधी भाषा में लोक संस्कृति पर आधारित रमेश दूबे उर्फ रमेशवा की कामेडी इन दिनों यू ट्यूब सहित सोशल मीडिया पर दर्शकों के सिर चढ़कर बोल रही है। चार पांच से बीस मिनट अवधि की उनके कामेडी को देश-विदेश में फैले हुए अवधी भाषी बड़े चाव से देखकर शेयर कर रहे हैं। युवाओं में उसके प्रति दीवानगी का आलम है। लोगों में उसकी नई शार्ट मूवी को देखने के बाद उसे वाट्सएप के जरिए परिचितों रिश्तेदारों में भेजने की होड़ मची है।रमेश दूबे की नई कामेडी पिछले शनिवार को ‘परपंची निहोरन चाची’ के नाम से उन्नती फिल्म बैनर से यू ट्यूब पर रिलीज हुई है। 6 जुलाई से महज तीन महीने में उनके कामेडी सफर का यह पन्द्रहवां मुकाम है। इसके पूर्व हंसते हंसते जीना सीखो के आह्वान के साथ ‘बुढ़ऊ हरिद्वार चलो’ एवं ‘का लुटावन ठेका लिहां है’ सहित कई कामेडी दर्शकों में लोकप्रिय हो चुकी है।
[गांव की सोंधी माटी की खूशबू]
गांव की पगडंडी, गली – चौबारे, ताल – पोखरे, फूस के छप्पर, गाय – भैंस का रंभाना, पक्षियों की चहचहाहट, पीपल बरगद का छांव, गांव की प्रधानी, खेती किसानी उनके कैमरे की बेढब वादियां हैं। गांव के लुटावन, खेलावन, सुकई, चेतराम, बूढ़ा, निहोरन चाची जैसी नायक-नायिका उनके पात्र हैं। गांव की गरीबी लाचारी युवाओं की बेरोजगारी नव-वधुओं के अरमान, खेत में जूझता किसान, युवाओं की आरामतलबी, पान की ढाबली से लेकर छप्पर के होटलों में नेता जी की हनक, गंजेडियों की सनक, कस्बा और क्षेत्रीय हाट की हलचल मेले की रौनक रमेशवा के कामेडी के कथानक है।
[कामेडी की मंजिल है हंसते-हंसते जीना]
करनैलगंज तहसील और हलधरमऊ ब्लाक में लखनऊ रोड पर चौरी चौराहे पर स्थित ग्राम परसा महेशी में 08 जून 1988 को जन्में रमेश दूबे बताते हैं कि अभिनय की प्रेरणा मां के आंचल से मिली। पिता शेष नरायन दूबे सहित छह भाइयों में आपस में कभी नहीं पटी।जीवन में वे कभी एक चारपाई पर एक साथ नही बैठे। घर में मां और चाचियों में दो दो दिनों तक गाली गलौज का महाभारत चलता था। परिवार में हम दो भाइयों को एक पल भी चैन नहीं मिला। इसी कलह में दादी और चाचियों के बीच हुई कहासुनी का हमने नकल उतारना शुरू कर दिया। पड़ोसियों के कहने पर हम दादी के गुस्से में चेहरे की भाव-भंगिमा, कडुवाहट-बौखलाहट भरी गुस्सैल बोल को हुबहू उतारते थे।
[ऐसे मिली उपलब्धि]
करनैलगंज में कन्हैयालाल इंटर कालेज से इंटर करने के बाद लखनऊ के भारतेंदु नाट्य अकादमी से 2011 में फिल्म व नाट्य निर्देशन का प्रशिक्षण लिया। रवीन्द्रालय में कई नाटकों में भाग लेने के साथ एफ एम रेडियो के प्रहसन में बडकऊ का काफी दिनों तक रोल किया। सैकड़ों स्टेज शो में भाग लिया लेकिन मन को संतुष्टि न मिलने पर इसी वर्ष से अवध की लोक संस्कृति व गांव के माहौल पर आधारित शार्ट मूवी का निर्माण उन्नत फिल्म हाउस के बैनर से शुरू किया। रमेशवा बताते हैं कि किसी भी कथानक पर मौलिक अभिनय के साथ परिवार की एकता पर बल देना और दुख-संताप व समस्या से बोझिल लोगों को हंसते हंसते जीने का संदेश उनके अभिनय का लक्ष्य है।रमेशवा ने संकल्प व्यक्त किया कि वह अभिनय में द्विअर्थी अश्लील संवाद व भोडे भाव- प्रदर्शन से सस्ती लोकप्रियता का रास्ता नहीं अख्तियार करेंगे। वे कहते हैं कि यह सही है कि कामेडी के क्षेत्र में उनकी अभिनय -यात्रा अभी शुरू हुई है।
[लुटावन काका का गजब]
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