नवरात्रि दस अक्टूबर से होगा शुरू,जानें किस दिन होगी देवी के कौन-से स्वरूप की पूजा और नवरात्रि का महत्व
चौपाल(यूपी) ! इस साल शरद नवरात्रि 10 अक्टूबर से शुरू हो रहे हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार शरद नवरात्रि अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होते हैं और विजयादशमी के पहले नवमी तक चलते हैं। इन नौ दिनों तक मां दुर्गे के नौ अलग- अलग रूपों – मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी,चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और मां सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है।
इस बार नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना नीचे दीए गई इन तिथियों और दिन को होगी-
10 अक्टूबर, प्रतिपदा – बैठकी या नवरात्रि का पहला दिन- घट/ कलश स्थापना – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी पूजा
11 अक्टूबर, द्वितीया – नवरात्रि 2 दिन तृतीय- चंद्रघंटा पूजा
12 अक्टूबर, तृतीया – नवरात्रि का तीसरा दिन- कुष्मांडा पूजा
13 अक्टूबर, चतुर्थी – नवरात्रि का चौथा दिन- स्कंदमाता पूजा
14 अक्टूबर, पंचमी – नवरात्रि का 5वां दिन- सरस्वती पूजा
15 अक्टूबर, षष्ठी – नवरात्रि का छठा दिन- कात्यायनी पूजा
16 अक्टूबर, सप्तमी – नवरात्रि का सातवां दिन- कालरात्रि, सरस्वती पूजा
17 अक्टूबर, अष्टमी – नवरात्रि का आठवां दिन-महागौरी, दुर्गा अष्टमी ,नवमी पूजन
18 अक्टूबर, नवमी – नवरात्रि का नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण
19 अक्टूबर, दशमी – दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी
[नवरात्रि का महत्व]
हिन्दू धर्म में किसी शुभ कार्य को शुरू करने और पूजा उपासना के दृष्टि से नवरात्रि का बहुत महत्व है। एक वर्ष में कुल चार नवरात्र आते हैं। चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्र काफी लोकप्रिय हैं और इन्हीं को मनाया जाता है। इसके अलावा आषाढ़ और माघ महीने में गुप्त नवरात्रि आते हैं जो कि तंत्र साधना करने वाले लोग मनाते हैं। लेकिन सिद्धि साधना के लिए शारदीय नवरात्रि विशेष उपयुक्त माना जाता है। इन नौ दिनों में बहुत से लोग गृह प्रवेश करते हैं, नई गाड़ी खरीदते हैं साथ ही विवाह आदि के लिए भी लोग प्रयास करते हैं। क्योंकि मान्यता है कि नवरात्रि के दिन इतने शुभ होते हैं इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने के लिए लग्न व मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती।
[जानें घट स्थापना का महत्व]
कलश को सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला व मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रुद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्रि के समय ब्रह्मांड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदादायक तरंगें नष्ट हो जाती हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।
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विज्ञापन-अवध क्षेत्र धूम मचाएंगे शिव शक्ति जागरण परिवार के कलाकार,नवरात्र में देवी जागरण के लिये करें सम्पर्क-शिव शक्ति जागरण परिवार।
कैसे हुई मां दुर्गा की उत्पत्ति,पढ़े ये कथा
शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 10 अक्टूबर से होने जा रही है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दु्र्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि आदि शक्ति मां दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुई। पुराणों में इसका उल्लेख मिलता है। एक कथा के अनुसार असुरों के अत्याचार से तंग आकर देवताओं ने जब ब्रह्माजी से सुना कि दैत्यराज को यह वर प्राप्त है कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से होगी, तो सब देवताओं ने अपने सम्मिलित तेज से देवी के इन रूपों को प्रकट किया। विभिन्न देवताओं की देह से निकले हुए इस तेज से ही देवी के विभिन्न अंग बने।भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ, यमराज के तेज से मस्तक के केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितंब, ब्रह्मा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पौरों की ऊंगलियां, प्रजापति के तेज से सारे दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं।फिर शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह प्रदान किया।इसके अतिरिक्त समुद्र ने बहुत उज्जवल हार, कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगुठियां भेंट कीं। इन सब वस्तुओं को देवी ने अपनी अठारह भुजाओं में धारण किया। मां दुर्गा इस सृष्टि की आद्य शक्ति हैं यानी आदि शक्ति हैं। पितामह ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकरजी उन्हीं की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। अन्य देवता भी उन्हीं की शक्ति से शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं।