January 15, 2025

फैजाबाद का गौरवशाली इतिहास

0

उत्तर प्रदेश के नक्शे पर पूर्वी ओर राजधानी लखनऊ से करीब 130 किमी पूरब स्थित फैजाबाद अपनी विविधताओं के लिए हमेशा से ही लोकप्रिय रहा है।

शहर के उत्तरी छोर पर पावन सलिला सरयू इसके सौन्दर्य को चार चांद लगा रही है। फैजाबाद एक मध्यम स्तर का शहर अपने गौरवशाली इतिहास के साथ गर्व से हर आगंतुक के लिए अपने रंगीन अतीत को प्रस्तुत कर रहा है।

शहर फैजाबाद की नींव बंगाल के पहले नवाब अली वर्दी खान के द्वारा 1730 ई0 में रखी गई। आज से लगभग260

वर्ष पूर्व अवध के दूसरे नवाब सफदर जंग ने शहर को अपने सैन्य मुख्यालय के रूप में विकसित किया। बाद में उनके उत्तराधिकारी अवध के तीसरे नवाब शुजाउद्दौला ने फैजाबाद को अवध की राजधानी बनाया। इनके द्वारा फैजाबाद शहर में किले-ए-कलकत्ता नाम के एक किले का भी निमार्ण कराया गया। बक्सर के युद्ध में अंग्रेजो से पराजित होने के बाद अपनी मृत्यु तक नवाब शुजाउद्दौला तथा उनकी पत्नी इसी किले में रहते थे। इनके द्वारा सन् 1765 ई में फैजाबाद में चौक का निर्माण तथा बाद में फैजाबाद के दक्षिण आसफबाग, बुलंदबाग तथा अंगूरी बाग का निमार्ण कराया गया। नवाब शुजाउद्दौला के समय में फैजाबाद शहर ने ऐसी समृद्धि प्राप्त की कि जिसे फैजाबाद का स्वर्णिम काल कहा जाय तो अतिशयोक्ति नही होगी। नवाब शुजाउद्दौला के पुत्र तथा अवध के चौथे नवाब आसफ उद् दौला ने अवध की राजधानी को सन् 1775 ई में फैजाबाद से लखनऊ स्थानान्तरित कर दिया। राजधानी के स्थानान्तरण के बाद तथा सन् 1815 में बहु बेगम की मृत्यु के पश्चात् फैजाबाद की समृद्धि को ग्रहण सा लग गया।

सन् 1857 की क्रांति के समय अयोध्या हनुमान गढ़ी के पुजारी बाबा राम चरण दास, बेगमपुरा के अच्छन खान व हस्नू कटरा के अमीर अली का जिक्र मिलता है। अंग्रेजों इनको बागी लीडर करार दिया था। हिंदु व मुस्लिम एकता को मजबूत करने के लिए26 जून सन् 1857 को फैजाबाद की बादशाही मस्जिद में दोनों संप्रदाय के लोगों की बैठक बुलाई गई थी। इस बैठक में अंग्रेजों की हिमायत करने पर बहादुरशाह जफर के दामाद मिर्जा इलाही बख्श पर क्रांतिकारियों की भीड़ ने हमला कर दिया। उन्हें भाग कर जान बचानी पड़ी। बाद में अच्छन खां को ब्रिटिश फौज ने पकड़ कर कांतिकारियों से जुड़े राज को कबूलवाने का प्रयास किया गया, जिसमें नाकामी हाथ लगी। बाद में उनका सिर कलम कर दिया गया। बाबा रामशरण दास व अमीर अली भी गिरफ्तार कर18 मार्च 1858 को अयोध्या के कुबेर टीला स्थित इमली के पेड़ पर सरे आम फांसी दे दी गई। कुबेर टीला का यह पेड़ वर्षों तक शहीदों के स्मारक बना रहा। 28 जनवरी 1935 को अंग्रेज सरकार ने इस पेड़ को कटवा दिया, फिर भी यहां लोग आते जाते रहे। यह स्थल धार्मिक स्थल के तौर पर भी प्रसिद्ध रहा। पर्यटन विभाग ने इसे प्रमुख पर्यटन के केंद्र के रूप में विकसित किया। अब यह स्थान रामजन्मभूमि अधिग्रहीत स्थल पर पडऩे के कारण आम आदमी की पहुंच से दूर हो चुका है। ब्रिटिश फौज के सुबेदार दिलीप सिंह ने विद्रोह कर फैजाबाद जेल पर हमला कर दिया और यहां बंद क्रांतिकारियों को मुक्त कराकर आठ जून 1857 को फैजाबाद को आजाद घोषित कर दिया था। यह आजादी कुछ दिन ही रही। 15 जून 1857 को ब्रिटिश फौज ने उन्हें गिरफ्तार कर फांसी पर लटका दिया। बासुदेव घाट अयोध्या के पुजारी शंभु प्रसाद शुक्ल को गोंडा के राजा देवी बख्श सिंह की मदद व अंग्रेजों की खुफिया गिरी करने के आरोप में 13 नवंबर 1857 को फांसी दे दी गई। चहलारी के ठाकुर बलभद्र सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन में शहादत दी। राजा देवी बख्श सिंह की पत्नी ईश्वर कुमारी ने तुलसीपुर में ब्रिटिश फौज से लड़ती हुई शहीद हो गईं। तारुन थाना क्षेत्र के पंडित का पुरवा का प्राचीन कुंआ हड़हा कुंआ के नाम से प्रसिद्ध है। ग्रामवासियों का मानना है कि इस कुंआ में ब्रिटिश फौज ने कई क्रांतिकारियों को दफन कर दिया था। रुदौली का झबरी गांव क्रांतिकारियों का अस्त्र व शस्त्र का कारखाना था। ब्रिटिश फौज ने यहां धावा बोल कर कारीगरों को पकड़ लिया और नीम के पेड़ पर सरे आम फांसी पर लटका दिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed

error: Content is protected !! © KKC News

Discover more from KKC News Network

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading