बाराबंकी : बेधड़क अंदाज के राजनीतिक योद्धा थे बाबू बेनी प्रसाद वर्मा

विपक्षी नेताओं के स्वाभिमान का भी रखते थे ख्याल,कार्यकर्ताओं के लिए कुछ भी कर गुजरने को रहते थे तैयारस्पष्टवादिता के चलते प्रिय सखा मुलायम सिंह यादव से भी छेड़ दिया था युद्ध।
कृष्ण कुमार द्विवेदी(राजू भैया)
बाराबंकी। बाराबंकी के विकास पुरुष बेनी प्रसाद वर्मा को लोग प्यार से बाबूजी बोलते थे। उनका बेधड़क बोलने का अंदाज, स्पष्टवादिता उन्हें एक अलग धमकदार नेता के रूप में स्थापित करती थी। विपक्षी नेताओं के स्वाभिमान का वे ख्याल रखते थे तो अपने कार्यकर्ताओं के लिए कुछ भी कर गुजरने का माद्दा भी उनमें था। शायद यही वजह थी कि एक समय वह अपने प्रिय राजनीतिक मित्र मुलायम सिंह यादव से भी भिड़ गए और अपने रास्तों को अलग कर लिया था।खैर बाद में वे फिर लौटे और सपा से राज्यसभा सांसद बने। बाबूजी के जाने का गम आज आंसू बन के लाखों आंखों में लरज रहा है ।जाहिर है आप भले ही इस दुनिया से रुखसत हो गए हो लेकिन आपकी यादें हृदय में हमेशा जीवंत बनी रहेंगी
पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा आज भले ही हम सभी लोगों के बीच चले गए हो लेकिन फिर भी उनके जैसा नेता बाराबंकी में न पहले कोई हुआ था और ना कभी आगे होगा। इस अपूरणीय क्षति की पूर्ति भी नहीं की जा सकती है। दिवंगत वर्मा संबंधों को निभाने वाले नेता माने जाते थे। उनका यही गुण उन्हें राजनीति क्षेत्र में देश स्तर तक ले गया। निर्विवाद रूप से वे देश के बड़े नेता रहे हैं। लेकिन वे वर्मा बिरादरी का सिरमौर माने जाते रहे ।उन्होंने अपने साथ काम करने वाले अपने कार्यकर्ताओं के सुख-दुख से कभी भी मुंह नहीं मोड़ा। आज भी चर्चा में कहा जाता है कि जितनी सरकारी नौकरियां बेनी प्रसाद वर्मा ने अपने लोगों को दे दी अथवा दिलवा डाली, उतनी शायद ही कोई नेता अब दे सके।बेनी प्रसाद वर्मा समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे हो या फिर बीच में कुछ समय के लिए कांग्रेस में भी गए ।उन्होंने कभी भी दल के नेतृत्व के सामने दबकर बात नहीं की। वह जो कुछ बोलते थे मुंह पर स्पष्ट बोल देते थे। यही नहीं चाहे कार्यकर्ता हो अथवा नेता या फिर अधिकारी उनके शब्दों में सभी को संबोधित करने का जो पुट था वह हमेशा चर्चा का विषय बना रहता रहा।
पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से जब उनका बीच में बिगाड़ हुआ तो उस समय भी बेनी वर्मा मुंहफट अंदाज में स्पष्टवादिता के रथ पर सवार दिखे थे। यही नहीं उन्होंने अपनी पार्टी भी बनाई भले ही उसमें वह न सफल हुए हैं लेकिन उस बुरे समय को भी अपना अच्छा समय बना देने का जो उदाहरण बेनी प्रसाद वर्मा जी ने प्रस्तुत किया वह देश के नेताओं के लिए सबक है।दूसरे दलों के नेताओं से भी श्री वर्मा के अच्छे संबंध रहे हैं ।वह विपक्ष के नेताओं को भी सत्ता पक्ष में रहते हुए हमेशा सम्मान देते थे। शायद इसका प्रत्यक्ष उदाहरण समाज में आज भी मौजूद है। जब भाजपा के पूर्व विधायक सुंदरलाल दीक्षित एक मुकदमे में जेल में बंद थे तब बेनी प्रसाद वर्मा उनसे मिलने बाराबंकी जिला कारागार जा पहुंचे थे।उस समय उनके पुत्र राकेश वर्मा प्रदेश के कारागार मंत्री थे।मुझे याद है जब दो हजार दो /तीन में वह हैदरगढ़ क्षेत्र के रुकनुद्दीन पुर गांव में एक कार्यक्रम में आए हुए थे ।पत्रकार के रूप में जब मैंने उनसे कुछ तीखे सवाल जनपद की सपा की राजनीति को लेकर किए? तब बेनी प्रसाद वर्मा ने एक सेब उठाया और मुझसे कहा कि पंडित जी फल खाइए, छोड़िए राजनीति! जो मेरे आने पर यहां आया उसका भी स्वागत है जो नहीं आया उसका भी स्वागत है! आप आए मैं आपका स्वागत कर रहा हूं।फिर पंडित जी आप जैसे पत्रकार से मेरी मुलाकात हुई यह मेरा सौभाग्य है। उस समय उनकी ये वाकपटुता देखकर मैं बहुत कुछ सोचने को विवश हो गया था।जाहिर था कि अपने से छोटो को भी सम्मान देने की जो उनकी शैली थी वह शायद ही कुछेक नेताओं में देखने को मिलती हो। यही वजह रही कि 1974 में दरियाबाद से पहली बार विधायक बने बेनी प्रसाद वर्मा ने राजनीति का जो आयाम गढ़ा वहां तक पहुंचने के लिए नेताओं को बहुत से पापड़ बेलने पड़ेंगे।कांग्रेसी सांसद डॉ पी एल पुनिया बाराबंकी से चुनाव जीते तो उसमें भी बेनी प्रसाद वर्मा का काफी समर्थन माना गया। ये अलग बात है कि बाद में दोनों राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के बीच 36 का आंकड़ा हो गया ।यही नहीं उनके प्रिय मित्रों में समाजवादी चिंतक पंडित राजनाथ शर्मा भी शामिल है। बेनी प्रसाद वर्मा ने बाराबंकी जनपद में सड़कों का जिस तरह से जाल बिछाया, दूरसंचार मंत्री रहते हुए जिस तरह से संचार स्टेशन बनवाएं, उन्होंने मंत्री पद पर रहते हुए जिस तरह से युवाओं को नौकरी से जोड़ा, तमाम लोगों की मदद की वह आज भी एक मील का पत्थर है। जाहिर है कि बेनी प्रसाद वर्मा भले ही आज इस दुनिया से रुखसत हो गए हो लेकिन फिर भी वह बाराबंकी वासियों के दिलों में हमेशा विद्यमान रहेंगे। ऐसा हर बाराबंकी का वासी निवासी मानता है। शायद यही वजह है कि आज बाराबंकी जनपद अपने इस प्रिय नेता के ना रहने की सूचना पर आंसुओं में डूब गया है।
