गणतंत्रोत्सव पर विशेष लेख “जन – जन का गणतंत्र” प्रहलाद तिवारी की कलम से
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अयोध्या! जन जन का गणतंत्र, विविधता में अनेकता का गणतंत्र यानी लोकतंत्र, जनतंत्र व प्रजातंत्र के वासी हम तब हुए, जब हम आजाद हुए। सर्व विदित हैं कि 15 अगस्त 1947 को हम आजाद तो हो गए, लेकिन उस वक्त हमारे पास खोने को कुछ नहीं था। सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत खोखला हो चुका था। अकूत धन धान्य से परिपूर्ण संपदा ब्रिटेन पहुंच चुकी थी। किसी भी देश के भौतिक, सामाजिक व आर्थिक संपूर्ण दोहन, अंग्रेजों की खुली लूट का ऐसा उदाहरण विश्व के इतिहास में दुर्लभ है। अंग्रेज जब भारत आए तो उनको यह नहीं पता था कि यहां स्वंय उनकी सेना में मंगल पांडेय जैसा वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पैदा हो जाएगा और झांसी के दुर्ग से घोड़ा दौड़ाती एक ऐसी नव दुर्गा दृश्यमान होगी जिसकी उज्जेशवता व निर्भीकता आजादी की ऐसी ललक पैदा कर देगी जिससे अंग्रेजों को सात समंदर पार जाने की नींव रख देगी। अंग्रेज यह भी नहीं जानते थे कि भारत में सत्य अहिंसा, न्याय व राम का ऐसा पुजारी उभर कर सामने आएगा, जिसकी एक धोती में लिपटी काया व लाठी के आगे बड़ी बड़ी बंदूकें व मिसाइलें तो क्या रानी विक्टोयरिया जैसी महाशक्ति भी नतमस्तक हो जाएगी।
कभी सोचा न होगा कि फूट डालों व राज करो की नीति के बीच भगत सिंह, सुभाष चंद्र, चंद्र शेखर आजाद, राज गुरु जैसे अनगिनत आजादी के मतवाले मिल जाएंगे जो खुशी खुशी फांसी के फंदे को चूम लेंगे, खुद की पिस्तौल से जीवन छोड़ देंगे, लेकिन परतंत्रता नहीं स्वीकार्य करेंगे। आजाद तो हुए, पर देश चलाने व संघीय व्यवस्था लागू करने के लिए संविधान की जरूरत पड़ी। संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था, 1946 से संविधान बनाना शुरू हो गया था। दिसम्बर सन् 1949 में बनकर तैयार हो गया था। हमारा संविधान व इसका गणतांत्रिक स्वरुप ही हमारे देश को कश्मीर से कन्याकुमारी तक जोड़ने का कार्य करता है। यह वह दिन है जब हमारा देश विश्व मानचित्र पर एक गणतांत्रिक देश के रुप में स्थापित हुआ था। इसके साथ ही यह वह दिन भी है जब भारत अपने सामरिक शक्ति का प्रदर्शन करता है, जो किसी को आतंकित करने के लिए नही अपितु इस बात का संदेश देने के लिए होता है कि हम अपनी रक्षा करने में सक्षम हैं। यह संदेश बाहरी दुश्मनों के साथ घर में छिपे गद्दारों के लिए भी होता है। आज कुछ लोग आजादी मांग रहे हैं, अरे अमा कैसी आजादी, अभिव्यक्ति की, मौलिक अधिकारों की, विधायिका की, न्याय पालिका की, कार्यपालिका की, नीति निर्देशक तत्वों की, सब कुछ तो मिल गया, कैसे मिला, ये तुम पढ़े नहीं, नहीं तो आप आजादी नहीं मांग रहे होते, सेना पर पत्थर नहीं फेंक रहे होते, फिर भी आप यही की हवा से जिंदा हो, यही के पानी से प्यास बुझाते हो। राह से भटक कर आप इल्म पर इल्जाम लगवा रहे हो। लेकिन इसमें भी आपकी गलती नहीं, आप मैकाले की भाषा से ओतप्रोत हो, अगर कालिदास वेदव्यास व बाल्मीकि के श्लोक कानों में गूंज जाते तो स्वतंत्रता की परिभाषा सीख जाते और गणतंत्र की भावना हृदय में वास कर जाती। गणतंत्र दिवस का पर्व हमारे अंदर आत्मगौरव भरने का कार्य करता है तथा हमें पूर्ण स्वतंत्रता की अनुभूति कराता है।विश्व के रंग मंच पर भारत का मस्तक सिरमौर बनाने का संकल्प लेते हुए इकबाल के शेर के साथ बात खत्म।
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा,
हम बुलबुले हैं इसके ये गुलसिता हमारा।।
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