July 27, 2024

साथियों ! हमारे देश भारत का मार्गदर्शन आदिकाल से धर्मग्रन्थों ने किया है।इतिहास एवं पुराण के माध्यम से हम पूर्वकाल में घटित हो चुकी घटनाओं के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं।अनेक ऐसी घटनायें , देवी – देवता , भगवान , अवतार , पीर – पैगम्बर एवं महापुरुषों को किसी ने नहीं देखा है परंतु उनमें श्रद्धा एवं विश्वास का भाव इन धर्मग्रन्थों के अध्ययन या धर्मगुरुओं के उपदेश के माध्यम से ही प्रकट होता है। सनातन साहित्य में मानव जीवन को प्रभावित करने वाली ऐसी अनेक घटनाओं का विवरण प्राप्त होता है।सनातन धर्म की प्रत्येक कथा , व्रत – पर्व एवं त्यौहारों के गर्भ में सदैव विज्ञान समाहित रहा है।इन्हीं विशेष घटनाओं में महत्त्वपूर्ण है सूर्य एवं चन्द्रमा में ग्रहण लगना।पौराणिक कथाओं के अनुसार अमृत प्राप्त करने के लिए देवता एवं असुरों ने मिलकर समुद्र मन्थन किया।अनेकों जीवनोपयोगी रत्न इस मन्थन से निकलीं अन्त में निकला अमृत।देवता एवं असुरों को अलग – अलग पंक्ति में बैठाकर मोहिनीरूप धारी श्रीहरि विष्णु जी देवताओं को अमृत पिलाने लगे। राहु नामक दैत्य अमृत पीने की लालसा में वेश बदलकर देवताओं की पंक्ति में बैठ गया और अमृतपान कर गया , उसके इस छल को सूर्य एवं चन्द्रमा ने देख लिया और विष्णु जी को बता दिया।विष्णु जी ने राहु का मस्तक अपने चक्र से काटा तो परंतु अमृतपान करने के कारण उनकी मृत्यु नहीं हुई और दो भागों में (सिर एवं धड़) बंटकर वे राहु एवं केतु के नाम से प्रसिद्ध हुए।सूर्य को अपना शत्रु मानकर राहु ने उनको निगल लिया सम्पूर्ण सृष्टि में अंधकार हो गया तब ब्रह्मा जी ने उनको ग्रहों में स्थान दिया एवं एक विशेष समय में कुछ काल के लिए सूर्य एवं चन्द्रमा को निगलने की छूट प्रदान की। तभी से ग्रहण प्रारम्भ हुआ। चूंकि ग्रहणकाल में संसार को ज्योति प्रदान करने वाले प्रकाशस्रोत सूर्य को असुर द्वारा स्पर्श किया जाता है इसीलिए मन्दिरों के पट बन्द रहते हैं , पूजा – पाठ या कोई भी शुभकार्य वर्जित माना जाता है।सूर्य ग्रहण के दौरान तुलसी और शमी के पौधे का स्पर्श तो वर्जित ही है साथ ही ग्रहण काल में भोजन बनाना एवं भोजन पाना भी नहीं चाहिए तथा निद्रा का त्याग करना चाहिए। इन मान्यताओं को मानकर ही हमारी संस्कृति आगे बढ़ी है।आज मनुष्य स्वयं को आधुनिक मानने लगा है स्वयं को वैज्ञानिक युग का प्राणी कहने वाले अनेकों मनुष्य इस प्रकार भी हैं जो पौराणिक व्याख्यानों एवं घटनाओं को कोरी कल्पना मानकर हंसी तो उड़ाते ही हैं साथ ही अपने सभी कार्य यथावत् करते रहते हैं।आज के व्यस्ततम् युग में जहाँ मनुष्य को ढंग से सांस लेने की भी फुरसत नहीं है वहाँ ग्रहणकाल की वर्जनाओं को भला वे कैसे मान सकते हैं।परंतु उन बुद्धिमानों को यह विचार करना चाहिए कि आज विज्ञान भी सनातन की मान्यताओं को मानने पर विवश है।भले ही विज्ञान ग्रहण को खगोलीय घटना मानता हो परंतु मैं “आचार्य अर्जुन तिवारी” यह भी देख रहा हूँ कि सनातन धर्म ने मनुष्य के लिए ग्रहणकाल में जो कार्य वर्जित किये हैं विज्ञान भी थोड़ी भिन्नता के साथ उनको वर्जित करने की घोषणा कर चुका है।विज्ञान के अनुसार जब ग्रहण की अनोखी घटना घटती है तब वातावरण एवं वायुमण्डल में एक नकारात्मक ऊर्जा फैल जाती है ऐसे में भोजन बनाने , खाने , सोने आदि से मनुष्य के मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव प्रड़ता है। सनातन धर्म की यह दिव्यता है कि उसके द्वारा धरती के ही प्राणियों की नहीं बल्कि माँ के गर्भ में पल रहे शिशुओं की भी सुरक्षा की चिंता की गयी है।सनातन की मान्यता है कि ग्रहण की छाया गर्भवती स्त्री पर कदापि नहीं पड़नी चाहिए , गर्भवती के द्वारा सोना या कोई भी कार्य करना ग्रहणकाल में वर्जित है अन्यथा गर्भ में पल रहे बच्चों के अंग विकृत हो सकते हैं। परंतु आज की नारियाँ इसे नहीं मानना चाहतीं और अनेक प्रकार के अपंग बच्चों को जन्म देती हैं।इतिहास की किसी भी घटना को आधुनिक मनुष्य ने देखा तो नहीं है परंतु उसे यदि मानता है तो यह उसकी बुद्धिमत्ता है परंतु आज अधिक बुद्धिमानों की एक लम्बी कतार समाज में देखने को मिलती है जो स्वयं के अतिरिक्त किसी को भी नहीं मानते और इसका परिणाम भी भोगा करते हैं।ग्रहण एक पौराणिक एवं खगोलीय घटना है , पुराण या विज्ञान इस काल में यदि किसी कार्य को न करने की सलाह देता है तो उसे सभी को मानना चाहिए क्योंकि इसमें मानवमात्र के कल्याण की कामना है।

सभी चौपाल प्रेमियों को “आज दिवस की मंगलमय कामना।

लेखक – आचार्य अर्जुन तिवारी
श्रीमद्भागवत प्रवक्ता
संरक्षक संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश) 9935328830

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