Kkc न्यूज ! चौपाल परिवार की ओर से आज का प्रात: संदेश,लेखक-आचार्य अर्जुन तिवारी
![](https://i0.wp.com/www.khabrokichaupal.com/wp-content/uploads/2019/05/Arjun-Mausa-20190402_080426.jpg?fit=640%2C640&ssl=1)
प्रिय साथियों ! हमारा देश भारत आदिकाल से विश्वगुरु कहा जाता रहा है तो इसका प्रमुख कारण रहा है हमारी संस्कृति एवं संस्कार।हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति समस्त विश्व की संस्कृतियों में सर्वश्रेष्ठ एवं समृद्धशाली संस्कृति है।हमारे देश को विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता वाला देश माना जाता है।इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कारण है भारतीय परिवेश।हमारी संस्कृति को महान बनाने वाले पिरमुख तत्त्व रहे हैं हमारे , शिष्टाचार , सदाचार , सभ्य संवाद , धार्मिक संस्कार वैदिक , पौराणिक एवं लौकिक मान्यताओं का अद्भुत समन्वय। हमारी संस्कृति इसलिए भी श्रेष्ठ है क्योंकि यह “मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम” की अनुकरणीय एवं “लीलापुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण की अनुसरणीय शिक्षाओं की साक्षी रही है।हमारे महान ऋषियों – महर्षियों ने हमारी संस्कृति को महान बनाने में विशेष योगदान दिया है।भारतीय संस्कृति मात्र अपने देश भारत को ही नहीं अपित सम्पूर्ण पृथ्वी को ही अपना परिवार मानते हुए “वसुधैव कुटुम्बकम्” का उद्घोष करती रही है।लिखा भी है :– “अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् ! उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् !!” अर्थात् :– यह मेरा है ,यह उसका है , ऐसी सोच संकुचित चित्त वाले व्यक्तियों की होती है , इसके विपरीत उदारचरित वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी होती है। इसी सूत्र को आधार मानकर समस्त विश्व को अपना परिवार मानकर मानव मात्र के कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति में भगवान वेदव्यास , आदिकवि वाल्मीकि जी , आदिगुरु शंकराचार्य जी , रामानुज , तुलसीदास , तुकाराम , नानक , कबीर आदि ने अपना विशेष योगदान देते हुए मार्गदर्शन प्रदान किया है।आज मानवमात्र को आधुनिकता एवं भौतिकता ने चारों ओर से जकड़ रखा है , ऐसे में अपनी संस्कृति एवं संस्कार को बचाये रखना एवं अक्षुण्ण बनाये रखना किसी चुनौती से कम नहीं है।आज जहाँ विश्व के अनेक देश हमारी संस्कृति को अपना आदर्श मानने लगी हैं वहीं यत्र – तत्र यह भी देखने को मिल रहा है कि हम स्वयं अपनी संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति के अधीन होते जा रहे हैं।आज जिस प्रकार एक देश दूसरे देश से एवं एक परिवार दूसरे परिवार से वैमनस्यता बनाये हुए हैं उससे “वसुदैव कुटुम्बकम्” के उद्घोष पर प्रश्नचिन्ह सा लगता प्रतीत हो रहा है। मैं “आचार्य अर्जुन तिवारी” आज समाज में देख रहा हूँ कि प्राय: परिवार के लोग ही परिवार के ही होकर नहीं रह पा रहे हैं। सम्पूर्ण धरती को अपना परिवार मानने वाले भारत में आज परिवारों के बीच हो रहे विघटन को देखकर हृदय यह विचार करने को विवश हो जाता है कि यदि आज ऐसा हो रहा है तो इसका कारण क्या है ?? यदि इसके मूल में जाया जाय तो यही निष्कर्ष निकलता है कि आज यदि ऐसा हो रहा है तो इसका अर्थ यही है कि कहीं न कहीं से हम अपनी संस्कृति एवं संस्कार को भूलते जा रहे हैं।इतना होने के बाद भी यदि हमारी संस्कृति ने अपना स्थान बना रखा है तो उसका कारण यह है कि आधुनिक होती जीवनशैली में भी कुछ लोगों ने आज भी अपनी परम्परा और मूल्यों को बनाकर रखा है।आज आवश्यकता है कि हम अपने आदर्शों के पदचिन्हों का अनुसरण करने का प्रयास करते हुए अपनी दिव्य संस्कृति को पहचानें एवं भारत को पुन: विश्वगरु बनाने में अपना योगदान देने का प्रयास करें।आज हमारे पूर्वजों की दिव्यात्मायें हमारी ओर निहार रही हैं।हमारा कर्तव्य बनता है कि हम उनके बताये गये संस्कारों का पूर्णतय: पालन करके अपने राष्ट्र एवं संस्कृति की सेवा एवं संरक्षण के लिए सजग हो जायं।
आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता-श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक-संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
![](https://i0.wp.com/www.khabrokichaupal.com/wp-content/uploads/2018/11/PicsArt_11-30-08.10.06.jpg?resize=100%2C100)