March 16, 2025

राजनीति में चुनाव दौरान नीतियों रीतियों की जगह बढ़ती जाति धर्म सम्प्रदाय और देवी देवताओं की परम्परा पर विशेष

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राजनीति में चुनाव दौरान नीतियों रीतियों की जगह बढ़ती जाति धर्म सम्प्रदाय और देवी देवताओं की परम्परा पर विशेष

साथियोंं :कहते हैं कि राजतंत्र में राजा रानी के पेट से पैदा होता था।लेकिन लोकतंत्र में राजा मतदान वाली मतपेटी से जनता पैदा करती है।जनता मतपेटी से जिसे पैदा करती है वहीं उसका राजा यानी भाग्यविधाता बनता हैं जिन्हें जनप्रतिनिधि नेता कहते है।लोकतंत्र में जनता मतदाता की भूमिका अदा करके अपना मनचाहा प्रवक्ता, प्रतिनिधि,अगुवा, संरक्षक बनाती है और जनता की अगुवाई एवं चौकीदारी करने वाला जनता के पास उसका मत अथवा समर्थन मांगने जाता है।लोकतंत्र में राजनैतिक दल अथवा उससे जुड़े राजनेता जनता यानी मतदाता के दिलों में अपनी नीतियों, रीतियों ईमानदारी देशभक्ति का विश्वास पैदा करते हैं।आजादी के बाद से हमारे यहाँ भी राजनैतिक दल अपनी भावी नीतियों, रीतियों, विकास एवं राष्टभक्ति के नाम पर इलेक्शन में मतदाताओं से वोट मांगने की परम्परा रही हैं किन्तु पिछले कई दशकों से चुनाव में वोट के लिये नीतियों रीतियों को पीछे करके जाति धर्म सम्प्रदाय, क्षेत्रवाद के साथ ही भगवान देवी देवतावाद चुनावी बैतरणी पार करने के मुद्दे बनने लगे हैं।भारत जैसे में विशालकाय लोकतांत्रिक राम रहीम कबीर सुदामा कृष्ण-कन्हैया रसखान और जगतजननी आदिशक्ति के पावन देश प्रदेश की धरती पर आजकल चुनावी परिदृश्य बदलने का दौर शुरू हो गया है।देश की अस्मिता को दांव पर लगाकर जम्मू कश्मीर के साथ सेना के शौर्य को चुनावी बैतरणी पार करने का माध्यम बनाया जा रहा है।इतना ही नहीं राजनैतिक दलों ने अपनी विभिन्न लोक लुभावनी योजनाओं के साथ ही बाबर राम के साथ रामभक्त हनुमान और आदिशक्ति को अपना राजनैतिक आराध्य मानकर उन्हें भी चुनाव में घसीटने लगे हैं।अबतक चुनाव रणक्षेत्र में जाति धर्म सम्प्रदाय के साथ ही बाबर की बाबरी मस्जिद एवं राम जन्मभूमि का सहारा लिया जाता था लेकिन इस बार राम के साथ हमेशा उनके हृदय में रहने हनुमान को भी चुनावी मुहिम में शामिल कर लिया गया है।भगवान राम एवं हनुमान को अलग करने का जो कार्य आज देवी देवता और जनता जनार्दन नहीं कर सकी वह असंभव कार्य हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीति करने लगी है।आगामी लोकसभा चुनाव में अगर भाजपा रामनामी दुपट्टा डाले घूम रही हैं तो उसकी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ने भी राम से दूरी बनाकर हनुमान जी का दुपट्टा डाल लिया है।चुनाव के दौरान मतदाताओं के बीच से मुख्य मुद्दों का महत्वहीन होना और धर्म जाति सम्प्रदाय का वर्चस्व बढ़ना हमारे लोकतांत्रिक भविष्य के लिए उचित नहीं कहा जा सकता है।

भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी यूपी।

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