नही हुआ दूसरा कोई मोगैंबो,अमरीशपुरी की पुण्यतिथि पर विशेष
[नही हुआ दूसरा कोई मोगैंबो, अमरीश पुरी की पुण्य तिथि पर विशेष]
[खबर फिल्मी दुनिया से]
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चौपाल-:
======चरित्र अभिनेता चमन पुरी और मदन पुरी के छोटे भाई अमरीश पुरी हिन्दी फिल्मों की दुनिया का एक प्रमुख स्तंभ रहे हैं। अभिनेता के रूप निशांत, मंथन और भूमिका जैसी फ़िल्मों से अपनी पहचान बनाने वाले अमरीश पुरी ने बाद में खलनायक के रूप में काफी प्रसिद्धी पायी। उन्होंने 1984 मे बनी स्टीवेन स्पीलबर्ग की फ़िल्म “इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ़ डूम” में मोलाराम की भूमिका निभाई जो काफ़ी चर्चित रही। इस भूमिका का ऐसा असर हुआ कि उन्होंने हमेशा अपना सिर मुँडा कर रहने का फ़ैसला किया। इस कारण खलनायक की भूमिका भी उन्हें काफ़ी मिली। व्यवसायिक फिल्मों में प्रमुखता से काम करने के बावज़ूद समांतर या अलग हट कर बनने वाली फ़िल्मों के प्रति उनका प्रेम बना रहा और वे इस तरह की फ़िल्मों से भी जुड़े रहे। फिर आया खलनायक की भूमिकाओं से हटकर चरित्र अभिनेता की भूमिकाओं वाले अमरीश पुरी का दौर।अमरीश पुरी का जन्म 22 जून 1 9 32 को जालंधर,में हुआ था। पिता का नाम लाला निहाल चंद था। उनकी मां का नाम वेद कौर था अमरिश पुरी का विवाह उर्मिला दिवेकर (1 9 57 – 2005) था हुआ है। उनके बच्चे हैं: राजीव और नम्रता।पहले ही स्क्रीन टेस्ट में विफल रहे और उन्होंने ‘भारतीय जीवन बीमा निगम में नौकरी कर ली। बीमा कंपनी की नौकरी के साथ ही वह नाटककार सत्यदेव दुबे के लिखे नाटकों पर ‘पृथ्वी थियेटर में काम करने लगे। रंगमंचीय प्रस्तुतियों ने उन्हें टी.वी. विज्ञापनों तक पहुँचाया, जहाँ से वह फि़ल्मों में खलनायक के किरदार तक पहुँचे। अमरीश पुरी का आरम्भिक जीवन बहुत ही संघर्षमय रहा।अमरीश पुरी ने 1960 के दशक में रंगमंच को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने दुबे और गिरीश कर्नाड के लिखे नाटकों में प्रस्तुतियाँ दीं। रंगमंच पर बेहतर प्रस्तुति के लिए उन्हें 1979 में संगीत नाटक अकादमी की तरफ से पुरस्कार दिया गया, जो उनके अभिनय कैरियर का पहला बड़ा पुरस्कार था। लंबा कद, मज़बूत क़द काठी, बेहद दमदार आवाज़ और ज़बर्दस्त संवाद अदायगी जैसी खूबियों के मालिक अमरीश पुरी को हिन्दी सिनेमा जगत के कुछ सबसे सफल खलनायकों में गिना जाता है। 1971 में उन्होंने फि़ल्म ‘रेशमा और शेरा से खलनायक के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की लेकिन वह इस फि़ल्म से दर्शकों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सके। मशहूर बैनर बाम्बे टॉकीज में क़दम रखने के बाद उन्हें बड़े बड़े बैनर की फि़ल्म मिलनी शुरू हो गई। अमरीश पुरी ने खलनायकी को ही अपना कैरियर का आधार बनाया। इन फि़ल्मों में श्याम बेनेगल की कलात्मक फि़ल्म निशांत, 1975, मंथन 1976, भूमिका 1977, कलयुग 1980, और मंडी 1983, जैसी सुपरहिट फि़ल्म भी शामिल है जिनमें उन्होंने नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल और शबाना आजमी जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ काम किया और अपनी अदाकारी का जौहर दिखाकर अपना सिक्का जमाने में कामयाब हुए। इस दौरान उन्होंने अपना कभी नहीं भुलाया जा सकने वाला किरदार गोविन्द निहलानी की 1983 में प्रदर्शित कलात्मक फि़ल्म ‘अद्र्धसत्य में निभाया। इस फि़ल्म में उनके सामने कला फि़ल्मों के दिग्गज अभिनेता ओम पुरी थे। बरहराल, धीरे धीरे उनके कैरियर की गाड़ी बढ़ती गई और उन्होंने कुर्बानी 1980 नसीब 1981 विधाता 1982, हीरो 1983, अंधाक़ानून 1983, कुली 1983, दुनिया 1984, मेरी जंग 1985, और सल्तनत, और जंगबाज 1986 जैसी कई सफल फि़ल्मों के जरिए दर्शकों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई।1987 में उनके कैरियर में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ। अपनी पिछली फि़ल्म ‘मासूम की सफलता से उत्साहित शेखर कपूर बच्चों पर केन्द्रित एक और फि़ल्म बनाना चाहते थे जो ‘इनविजबल मैन पर आधारित थी। इस फि़ल्म में नायक के रूप में अनिल कपूर का चयन हो चुका था जबकि कहानी की मांग को देखते हुए खलनायक के रूप में ऐसे कलाकार की मांग थी जो फि़ल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे इस किरदार के लिए निर्देशक ने अमरीश पुरी का चुनाव किया जो फि़ल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ। इस फि़ल्म में उनके किरदार का नाम था ‘मोगेम्बो और यही नाम इस फि़ल्म के बाद उनकी पहचान बन गया। इस फि़ल्म के बाद उनकी तुलना फि़ल्म शोले में अमजद खान द्वारा निभाए गए किरदार गब्बर सिंह से की गई। इस फि़ल्म में उनका संवाद मोगेम्बो खुश हुआ इतना लोकप्रिय हुआ कि सिनेदर्शक उसे शायद ही कभी भूल पाएं।प्रेम पुजारी से फि़ल्मों की दुनिया में प्रवेश करने वाले अमरीश पुरी के अभिनय से सजी कुछ मशहूर फि़ल्मों में निशांत, मंथन, गांधी, मंडी, हीरो, कुली, मेरी जंग, नगीना, लोहा, गंगा जमुना सरस्वती, राम लखन, दाता, त्रिदेव, जादूगर, घायल, फूल और कांटे, विश्वात्मा, दामिनी, करण अर्जुन, कोयला आदि हैं। 73 वर्षीय अमरीश पुरी की 12 जनवरी 2005 को मुम्बई में मृत्यु हो गई थी। पुरी ने तकऱीबन 220 से भी अधिक हिन्दी फि़ल्मों में काम किया है। 1971 में उनकी पहली फि़ल्म रिलीज हुई थी। उन्होंने ज़्यादातर फि़ल्मों में खलनायक की भूमिका निभाई थी।