June 12, 2025

करोडों खर्च के बाद अस्तित्व में तो आई लेकिन अविरल नही हो पाई तमसा नदी की धारा

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फोटो-बिना पानी के सूखी पड़ी मवई ब्लॉक क्षेत्र से निकली तमसा नदी।

मवई(अयोध्या) ! तमसा नदी,जिसे टोंस के नाम से भी जाना जाता है।ये गंगा नदी की एक सहायक नदी है।यह पर्यावरण को कई तरह से मदद करती है।यह नदी जल प्रदूषण को कम करने के साथ साथ जलीय जीवन के लिए आवास प्रदान करने और जैव विविधता को बनाए रखने में मदद करती है।इसके अतिरिक्त यह नदी कभी जल संरक्षण का बहुत बड़ा केंद्र रही जो आसपास के क्षेत्रों में कृषि और उद्योगों के लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है,लेकिन किसी जलश्रोत से जुड़े न होने के कारण आज तक ये अविरल नही हो पाई।

रामायण कालीन तमसा नदी है जिसका उद्गम स्थल अयोध्या जिले के पश्चिमी छोर पर स्थित मवई ब्लॉक के बसौड़ी में स्थित है।ये वही तमसा नदी है जिसके तट पर प्रभु श्री राम ने वनगमन के जाते समय प्रथम रात्रि निवास किया था।ये नदी पहले लोगों के लिये जीवन दायिनी सिद्ध हुआ करती थी।पशु पक्षी इसके शीतल जल को पीकर जहां तृप्त होते थे।वही धरती के भगवान कहे जाने वाले किसानों के लिये भी इसका जल वरदान साबित था।ये नदी पर्यावरण में भी कई प्रकार से सहायक है।जो विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी लेकिन वर्ष 2019 अयोध्या जिले के तत्कालीन डीएम डा0 अनिल पाठक ने मनरेगा योजना अंतर्गत इसकी खुदाई कराकर इसे पुनः अस्तित्व में ले आए,लेकिन उनका स्थानांतरण होते ही अतित्व में आने के बाद भी इस नदी का जल आज तक अविरल नही हो सका।जो थोड़ा बहुत जो जल रहता भी है वो सूर्य के प्रचंड ताप में सूख गया है।ऐसे में जीव जंतु और किसानों के खेतों की प्यास बुझाने ये नदी असफल हो रही है।ये नदी मवई रुदौली अमानीगंज,सोहावल, मिल्कीपुर, मसौधा, बीकापुर, तारुन आदि विकास खंडों से होती हुई अयोध्या से गोसाईंगंज अम्बेडकरनगर को जातीहै।आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण में तमसा नदी का वर्णन किया है।बताया जाता है कि 155 किलोमीटर में फैली इस नदी के तट पर महर्षि वाल्मीकि का आश्रम भी था।कटेहरी क्षेत्र के धार्मिक स्थल श्रवण क्षेत्र में इस नदी का संगम बिसुही नदी से होता है।मवई ब्लॉक में स्थित तमसा नदी के उद्गम स्थल के किनारे लखनीपुर गांव में एक प्राचीन भव्य हनुमान मंदिर है।जिसका ग्रामीणों ने 40 वर्ष पूर्व जीर्णोद्धार किया था।इसी मंदिर के मुख्य द्वार पर एक पुरानी शिला स्थापित है जिसमे उदगम स्थल होने बात लिखी है।यहां प्रतिवर्ष एक फरवरी को विशालकाय मेला लगता है।और शाम को भंडारा भी होता है।मान्यता है कि जो भी इस दिन इस उद्गम स्थल में स्नान कर हनुमान मंदिर पर माथा टेकता है और परिक्रमा करता है।उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।लेकिन आज भी इसमें इतना भी जल नही है कि लोग स्नान आदि कर सकें।वीरेंद्र वर्मा राजेश वर्मा उमाकांत महमूद अहमद खां आदि क्षेत्र के लोगों का कहना है कि इस नदी को कल्याणी नदी से जोड़ने की योजना थी।खुदाई भी कुछ दूर तक हुआ था,लेकिन अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते तमसा कल्याणी से नही जुड़ पाई।जिससे त्रेतायुगीन इस तमसा नदी का जल आज भी अविरल नही हो पाया।

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