सियासी “पण्डित” तुझे प्रणाम, हमारे ‘परसुराम’ हमारे ‘परसुराम’
सियासी “पण्डित” तुझे प्रणाम, हमारे ‘परसुराम’ हमारे ‘परसुराम’ !
जितेन्द्र तिवारी
2022 की चुनावी बयार उत्तरप्रदेश में 2020 में बह रही है। सियासत का रणक्षेत्र अभी से ही सज रहा है। प्रदेश की अवाम कोरोना से त्राहिमाम कर रही है लेकिन सियासतदान सियासी गोटियां सेट करने में मशगूल है। सत्ता से लेकर विपक्ष हरतरफ राजनीति का फार्मूला है। जाति , धर्म को साधने की गणित है। चुनाव की सरगर्मी है तो मूर्ति से लेकर दण्डवत प्रणाम करने तक की होड़ है। सत्ताविहीन दल देश के सबसे बड़े सूबे की सूबेदारी पाने का सियासी गुणा भाग लगा रहे है तो सत्तासीन सत्ता बचाने की हर कोशिश की तैयारी में है। अंधेरा घना है और अंधेरे की सियासत तले लोकतंत्र का उजियारा खोजने की कोशिश हो रही है। यूपी में सभी मुख्य विपक्षी दल एकमुश्त होकर योगी सरकार पर ब्राह्मणों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए निशाना साध रहे हैं। वहीं अब ब्राह्मणों की आस्था के प्रतीक परशुराम के जरिए एसपी से लेकर बीएसपी अपनी सियासी वैतरणी पार कराने की कोशिशों में हैं। तो कांग्रेस ब्राह्मण जनसंवाद करके ब्राह्मणों को जोड़ रही है। 2022 विधानसभा चुनाव से पहले यूपी की राजनीति एक बार जातिगत वोटबैंक की राजनीति शुरू हो गई। जिसमे अबकी बारी पण्डित जी की है। हर सियासी दल अबकी बार पण्डित जी को अपनाना चाह रहा है। सपा से लेकर बसपा और भाजपा से लेकर कांग्रेस सब कह रहे है पण्डित जी तुझे प्रणाम! ब्राह्मण कभी वोटबैंक नही रहा उसका कोई निश्चित सियासी दल भी न रहा लेकिन वर्षोबाद ही सही इसबार पासा पण्डित जी के पास आया जरूर है कि वो भी राजनीति में अपना मजबूत स्तम्भ गाड़ दे। दरअसल लंबे अरसे तक कांग्रेस ब्राह्मण समेत अगड़ी जातियों के वोटों से यूपी में सत्ता में काबिज रही, इसके बाद 2007 में दलित ब्राह्मण गठजोड़ के जरिए मायावती ने पहली बार अकेले दम पर यूपी में सरकार बनाई। पिछले कई साल से सवर्ण जातियों ने बीजेपी की ओर रुख किया है। यही नहीं 2017 चुनाव में बीजेपी को सवर्णों का एकमुश्त वोट मिला था। वहीं ब्राह्मण वर्ग इसमें बड़ा वोटबैंक बनकर उभरा था। लेकिन योगी राज में लगातार हो रहे हमले से ब्राह्मण वर्ग वैसे ही सरकार से खफा है, वहीं विकास दुबे एनकाउंटर ने इसमें आग में घी डालने का काम किया। ब्राह्मणों की नाराजगी को विपक्षी दल भी भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। यूपी में सभी मुख्य विपक्षी दल एकमुश्त होकर योगी सरकार पर ब्राह्मणों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए निशाना साध रहे हैं। वहीं अब ब्राह्मणों की आस्था के प्रतीक परशुराम के जरिए एसपी से लेकर बीएसपी यूपी में अपनी सियासी वैतरणी पार कराने की कोशिशों में हैं। वहीं कांग्रेस भी ब्राह्मण चेतना संवाद के जरिए वोटबैंक को साधने में जुटी है। सबसे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जितिन प्रसाद ने ब्राह्मण चेतना संवाद का आगाज किया, इसके जरिए वह यूपी के अलग-अलग जिले के ब्राह्मण समुदाय से विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात कर रहे हैं। अब पिछले दिनों समाजवादी पार्टी ने भगवान परशुराम की मूर्ति के साथ फोटो ट्वीट कर और लखनऊ में उनकी मूर्ति लगाने का ऐलान कर यूपी की पॉलिटिक्स को गरमा दिया। तो अपने पुराने सोशल इंजीनियरिंग फॉर्म्युले को याद करते हुए मायावती ने कहा कि जातियों के महापुरुषों को बीएसपी से ज्यादा किसी दल ने सम्मान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि अगर बीएसपी सत्ता में आती है तो न सिर्फ परशुराम की मूर्ति लगाई जाएगी बल्कि अस्पताल, पार्क और बड़े-बड़े निर्माण स्थल को महापुरुषों का नाम दिया जाएगा। यूपी में ब्राह्मणों की आबादी 10.5 फीसदी है। संख्या के आधार पर भले ही ब्राह्मण मतदाता कम हो लेकिन सत्ता का रूप बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। यह वर्ग राजनीतिक और सामाजिक ओपिनियन मेकर भी माना जाता है।इसीलिए इनदिनों मीडिया से लेकर सोशल मीडिया हर जगह ब्राह्मण वोटरों को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज है। देखना होगा कि ब्राह्मण समुदाय इस बार भी बीजेपी को तरजीह देता है या फिर एसपी-बीएसपी की ‘परशुराम पॉलिटिक्स’ बीजेपी से ब्राह्मण वोट खींचने में कामयाब होती है या पुरानी सुवर्ण हितैषी मानी जाने वाली कांग्रेस अपने पुराने वोटबैंक माने जाने वाले पण्डित जी को अपनी तरफ खिंचने में कामयाब होगी। फिलहाल ये अभी भविष्य के गर्त में है।