कृषकों की पीड़ा और शोषण लिखने से यदि उत्तेजना फैले तो फैले , इस उत्तेजना को फैलाना ही मेरा कर्तव्य :अरविंद विद्रोही

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खाद्य उत्पादों के महँगा होने से कृषकों और कृषि उत्पाद से जुड़े व्यापारियों को फायदा होता है । कृषि की लागत बढ़ती ही जा रही उसके अनुपात में कृषि उत्पाद का मूल्य भी बढ़ना वाज़िब है फिलहाल आवश्यकता सिर्फ इतनी कि कृषक कृषि के साथ साथ कृषि उत्पादन के भण्डारण एवं व्यापार में भी रूचि ले ,सीखे और इससे अतिरिक्त आमदनी करे ।

वेतनभोगी वर्ग हो या पूंजीपति वर्ग सभी को दर्द तभी होता जब कृषि उत्पाद के मूल्य बढ़ते हैं । बाकि बेफिजूल खर्च करने ,ऐशो आराम की वस्तुओ पर बेशुमार रूपये खर्च करने , होटलबाजी करने , महंगे महंगे परिधान खरीदने में इनको महंगाई नजर नही आती है ।

रही बात मजदूरों , कमजोर तबको के ऊपर खाद्य पदार्थों के मूल्यों में वृद्धि के प्रतिकूल असर की तो सरकार द्वारा सार्वजानिक वितरण प्रणाली के द्वारा गरीब रेखा के नीचे के लोगों के लिए विभिन्न जनसुविधाएं उपलब्ध हैं । सार्वजानिक वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार , मनमानी को नियंत्रित करके मजदूरों ,कमजोर तबकों की सम्पूर्ण मदद की जा सकती है । अधिकतर वेतनभोगी लोग वेतन के साथ साथ स्वघोषित काम के बदले दाम योजना का विधिवत् सञ्चालन करते ही हैं ।।

महंगाई नही , कृषि और कृषक हित विरोधी मानसिकता से ग्रसित हैं वेतनभोगी , पूंजीपति,व्यापारी और खाते पीते अघाये हुए लोग । ये तन ढकने के लिए नहीं बल्कि तन प्रदर्शित करने के लिए वस्त्र खरीदते , महंगे महंगे , होटलों में खाते पीते लेकिन जब खाद्य उत्पाद खरीदते तब रोते कलपते रहते ।

कृषकों के शोषण के दम पर बनी ऐयाशी की अट्टालिकाएं कब तक टिकेंगी ? इन अट्टालिकाओं से निकलती संगीत की धुनें , हँसी के फव्वारे , कहकहे कब मातम में तब्दील हों , रुदन और चीखों में बदल जाएँ यह किसी को समझ नही आ रहा है । कृषक को इतना बेजार और मजबूर मत करो कि उसके आँसू सूख जाये और वो खेती के औजारों को अपना हथियार बनाकर तुम्हारे शोषण के साम्राज्य को नेस्तानुबूत करने के लिए निकल पड़े । फिर मत कहना कि ये अपराधी हैं ,इन्होंने कानून हाथ में लिया क्योंकि आज जो लूट मची है वो तुम वेतनभोगियों , व्यापारियों ,पूंजीपतियों के संयुक्त मकड़जाल की दें है जिसमे जनप्रतिनिधि भी कमोबेश शामिल ही हैं ।।

हल्ला बोल — डॉ रामनोहर लोहिया

अन्याय के विरुद्ध विद्रोह न्यायसंगत है ।।

“दाम बांधों ”
हाँ , कृषकों की पीड़ा और जारी यह शोषण लिखने से उत्तेजना फैले तो फैले , इस उत्तेजना को फैलाना ही मेरा कर्तव्य और गर यह अपराध तो मैं अपराधी ही हूँ और ताजिंदगी अपराधी ही रहूंगा ।। —- अरविन्द विद्रोही

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