Kkc राजरंग में आप भी पढ़े की बाराबंकी में कांग्रेस व भाजपा का सपा पर हमला,सटाक -सटाक -सटाक

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फिर बसे छोटेलाल व सरवर की दुनिया,इसलिए जरूरी दिखे तनुज पुनिया,सपा में न मिला राज तो भाजपा की हुई रानी।

सपा को टाटा कर बाराबंकी के दो पूर्व विधायकों ने थामा कांग्रेस का दामन

बाराबंकी। कांग्रेस एवं भाजपा ने बाराबंकी सपा पर सिलसिलेवार हमले करके समाजवादी पार्टी में सनसनी फैला दी है। ऐसे में जहां पूर्व विधायक छोटे लाल यादव एवं सरवर अली खान को अपनी दुनिया कांग्रेस प्रत्याशी तनुज पुनिया में नजर आई है। तो वहीं दूसरी ओर सपा में राज ना मिलने पर श्रीमती राजरानी रावत फिर से अपने घर भाजपा में लौट आई हैं। वर्तमान घटित स्थिति को देखकर यही नजर आ रहा है जैसे कांग्रेस एवं भाजपा ने सपा पर हमला किया हो सटाक- सटाक- सटाक? बाराबंकी के वर्तमान परिदृश्य में जो स्थिति नजर आ रही है उसमें सपा को इस बीच तगड़ा झटका लगा है। समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक छोटे लाल यादव जो कुछ समय के लिए प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में चले गए थे उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली। यही नहीं समाजवादी पार्टी के नेता एवं पूर्व विधायक सरवर अली खान ने भी सपा को छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। इस पर सपा के रणनीतिकारों ने दावा किया कि दोनों पूर्व विधायक अब लगभग दगे हुए कारतूस सरीखे हो गए हैं। इसलिए इनसे सपा को कोई भी नुकसान नहीं होगा ।लेकिन अंदर खाने में जो खबरें आ रही हैं उसके तहत सपा इस पर काफी सतर्क हो गई थी। क्योंकि सदर के विधायक छोटे लाल यादव का प्रभाव यादव वर्ग में तो है ही बल्कि अन्य वर्गों में भी उनके संपर्क है। इसके अतिरिक्त सरवर का अल्पसंख्यक एवं अन्य वर्ग में भी अच्छा खासा प्रभाव बताया जाता है। सूत्रों का दावा है कि पूर्व विधायक छोटे लाल यादव एवं सरवर अली खान ने इसलिए अपना सियासी रास्ता बदला क्योंकि वह जहां थे उन्हें वहां अपनी सियासत आगे बढ़ती नजर नहीं आ रही थी। नेताद्वय को यह पता था कि वहां आगे की सियासत करने के लिए कुर्सी खाली नहीं है। ऐसे में जब तक नया रास्ता नहीं बनेगा तब तक आगे बड़ी राजनीति के बारे में सोचा नहीं जा सकता है। पता चला है कि काफी विचार मंथन के बाद अपने समर्थकों के बीच फिर जाकर निर्णय हुआ कि कांग्रेस में अभी ऐसी गुंजाइश नजर आ रही है ! बातचीत के दौर चले ।फिर उक्त दोनों नेता कांग्रेस प्रत्याशी तनुज पुनिया को जिताने के लिए कांग्रेस के साथ आ गए। जाहिर है कि इन नेताओं का मानना है कि हमारी राजनीतिक दुनिया फिर से बसे इसलिए कांग्रेस प्रत्याशी तनुज पुनिया उनके लिए जरूरी है ,और उनका जीतना भी।सपा के रणनीतिकारों ने इस मुद्दे पर कहा की उक्त नेताओं के कांग्रेसी कदम से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी राम सागर रावत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सनद हो कि छोटेलाल यादव सपा से विधायक हुए। उसके बाद जब पूर्व मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा कांग्रेस में गए तो वह कांग्रेसी हुए। फिर से सपाई हुए।वह दूसरी बार कांग्रेसी होने से पहले प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नजदीक थे। स्पष्ट है कि छोटे लाल व सरवर के लिए शायद ये अंतिम मौका हो?समाजवादी पार्टी इस परिस्थिति से निपटने के लिए अपने हाथ- पैर चला ही रही थी कि आज सपा को एक और बड़ा झटका लग गया। पूर्व के लोकसभा चुनाव में सपा से सांसद पद की प्रत्याशी रही श्रीमती राजरानी रावत ने आज सपा को टा टा कर दिया । ज्ञात हो कि राजरानी फतेहपुर से पूर्व विधायक भाजपा थी। उन्होंने भाजपा छोड़कर सपा ज्वाइन की थी। उसके बाद वह लोकसभा का चुनाव लड़ी थी। चर्चाओं के मुताबिक श्रीमती राजरानी रावत को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद वर्तमान सपा प्रत्याशी राम सागर रावत उन्हें पचा नहीं पाए थे। जिसकी टीस हमेशा राजरानी में बनी रहती थी। इस बार जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो उन्होंने समाजवादी पार्टी से अलग होने का फैसला कर लिया ।पता चला है कि उन पर कांग्रेस सहित अन्य कई दलों ने भी डोरे डाले ।लेकिन राजरानी ने अपने पुराने संपर्कों के जरिए भाजपा में लौटना ज्यादा मुनासिब समझा। श्रीमती रावत का यह दुर्भाग्य ही था कि वह पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा छोड़ बैठी थी? कहा जाता है कि वह भाजपा में बनी रहती तो शायद निवर्तमान सांसद प्रियंका रावत के स्थान पर वही भाजपा से सांसद होती?इस बार जब वह भाजपा में आयी तब भी देर हो चुकी थी क्योंकि भाजपा ने प्रियंका रावत के विकल्प के तौर पर जैदपुर विधायक उपेन्द्र रावत को अपना प्रत्याशी बनाया। साफ है कि जब सपा में राजरानी को इस बार राज ना मिला तो वह अपने घर भाजपा लौट आयी। उन्होंने कहा कि अच्छा महसूस कर रही हूं कि मैं अपने घर लौट आई।सूत्रों का दावा है कि पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप के लाख दबाव के बावजूद भी राजरानी ने राम सागर रावत के लिए चुनाव में काम करना स्वीकार नहीं किया । फिलहाल कुछ भी हो लेकिन एक बात तय हैं कि सरवर अली खान व छोटे लाल यादव तथा श्रीमती रानी रावत के समाजवादी पार्टी छोड़ने के बाद कहीं न कहीं सपा को करारा झटका लगा है। वैसे सपा का कहना है कि दलबदलू ओं का कोई भविष्य नहीं होता । जबकि दूसरी ओर कांग्रेस पूर्व विधायकों को अपने पाले में लाकर उत्साह से भरी हुई है ।वही प्रियंका रावत की नाराजगी से सनी भाजपा को सिंह राजरानी रावत के आने के बाद संबल जरूर मिला है। हां यह जरूर है कि राजनीतिक लोग चर्चाओं में कह रहे हैं कांग्रेस और भाजपा ने सिलसिलेवार सपा पर हमला ऐसे किया है *सटाक -सटाक-सटाक???*

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