February 16, 2025

एसएसपी लखनऊ की सलाह मानें तो सुधर सकती है कानून व्यवस्था

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लखनऊ। शहर की पुलिस व्यवस्था तभी सुधरेगी जब ग्रामीण क्षेत्रों में सुधार आएगा, पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों की पुलिस व्यवस्था में काफी सुधार भी हुआ है।
लखनऊ के पुलिस वरिष्ठ अधीक्षक कलानिधि नैथानी ने कई सारे पहलुओं पर चर्चा की।
कलानिधि नैथानी कहते हैं, किसी भी शहर में पुलिसिंग को तभी ही सही माना जाना चाहिए जब देहात की पुलिसिंग सफल हो जाती है। जो दूर दराज की चौकी होती है और दूर दराज के थाने उसकी मुख्यालय से औसतन 70-80 किमी होती है। ग्रामीण क्षेत्र में लोगों के लिए सब कुछ उनके बीट हल्के का इंचार्ज और बीट कांस्टेबल होते हैं, यदि वो सदा ही मंसा से काम नहीं करेंगे तो समाज का शोषण होना निश्चित है।
ग्रामीण क्षेत्रों की पुलिसिंग पर हमारा दबाव यह होता है कि जिसमें हम हिस्ट्रीशीटर के विरुद्ध कार्यवाई, कोई गुंडा है उसके विरुद्ध कार्यवाई, कोई दबंग है उसपर गुंडे की कार्यवाई, मिनी गुंडा की कार्यवाई ये सब हम करें। देहात क्षेत्र में चोरी-डकैती बहुत होती हैं तो पिछले 10 सालों में किसने डकैती डाली, किसने लूटपाट की उन्होंने सूचीबद्ध करके उनकी निगरानी करना। इस सबके बाद देहात के थानों में जाकर उनकी समीक्षा करना, वहां देखना की ये लोग क्या कर रहे है। गाँव से कोई हमारे ऑफिस आये तो उसे वरीयता से सुनना अगर वह लेट आये तब भी उसकी बात को सुनना और उससे यह पता लगाना कि उस क्षेत्र के थाने या चौकी में क्या चल रहा है।

पिछले कुछ वर्षों में बैंक संबंधित अपराध भी बढ़े हैं, इससे बचने के बारे में वो कहते हैं, हमेशा दो चीजें देखी जाती हैं एक तो घटना में अपराधी का पकड़ा जाना और दूसरा जिसके साथ अपराध होने वाला है या जिसके साथ अपराध हो सकता है उसको कैसे अपराध से बचाया जाये। जैसे वृद्ध महिलायें है जब वो बैंक में जाती हैं तो कोई आदमी उनकी मदद करने के बहाने आता है और उसके बाद उनका पैसा लेकर अचानक से गायब हो जाता है। इस टप्पेबाजी कहते हैं। इसके अलावा कोई फोन आता है और लोगों का पिन मांगता है और लोग दे देता हैं। गाँव क्षेत्रों में अवेयरनेस ही इसका इलाज है, जिसके लिए हम लोगों समय-समय पर काम किया करते हैं।

लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए आज की डेट में जो दो नम्बर हैं 100 और 1090 ये सबके पास हैं। लोग ये नम्बर डायल करें और अपनी तत्काल रिपोर्ट कराएं। यदि 100 नम्बर कोई कॉल आता है तो वह दब नहीं सकता है। लोगों से यही अपील है जैसे समय बदल रहा है वैसे ही पुलिसिंग भी बदल रही है। थानों को बताया जाता है कि वह और आगंतुक और सुलभ बनें। पीड़ितों के और संवेदनशील बने। इससे जनता अपनी बात को बिना दबाए खुलकर बात करने के लिए सामने आएगी। थानों पर साफ़ तौर पर ये बताया जा रहा है कि अल्पीकरण न करें पंजीकरण को बढ़ावा दें।

पुलिस का निरंतर फायर-फाइटिंग का काम होता है। इस समय जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है उसी हिसाब से पुलिस बढ़ती रहती है तो पुलिस पर कम दबाव पड़ता है। थानों में जब सिपाहियों की कमीं होती है तो ड्यूटी डबल शिफ्ट में लगने लगती हैं, लम्बी ड्यूटी लगने लगती हैं तब सिपाहियों का इरीटेशन बढ़ने लगता है। पब्लिक को चाहिए जहाँ पर पुलिस सही है तो अनावश्यक पेशबंदी न करें। अनावश्यक पेशबंदी से पुलिस और जनता दोनों को बचना चाहिए। सही चीज को पुलिस और जनता दोनों सही करेंगे तब एक तरह का मित्र पुलिस का माहौल बनता है।

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