अब निंदा नहीं चाहिए एक भी आतंकी जिंदा नहीं चाहिए- लेखक प्रहलाद तिवारी
बाराबंकी ! पुलवामा हमले पर वरिष्ठ पत्रकार प्रहलाद तिवारी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि शब्द नि:शब्द हैं। गले रूंधे हुए हैं। संवेदनाएं शून्य हो चलीं हैं। शहीदों के परिवार सदमें में हैं ।करूण क्रंदन से आत्मा आहत है। चित्कार कर रही है। खून उबल रहा है। कल जो पुलवामा में हुआ वह दिल दहला देने वाला मंजर था। जैसे जैसे शहीदों की मौत का आंकडा बढ़ रहा था,हर भारतीय का खून खौल रहा था। ये वक्त है देश के खड़े होने का है। इस समय देश गुस्से में हैं। रक्त हिलोरें मार रहा है। देश के दुश्मनों को धूल चटाने का है। राजनीति का नहीं है। राजनीतिक रोटियां सेंकने का भी नहीं है। ना ही उन तथा कथित बुद्धिजिवियों की सुनने का है जो सेना के खिलाफ प्रलाप करते रहते हैं। सेना की कार्रवाई पर मानवाधिकार का झंडा लेकर खड़े हो जाते हैं। जो अफजल गुरू की बरसी मनाते हैं। आतंकी को फांसी देने पर आधी रात के बाद सुप्रीम कोर्ट खुलवाते हैं। उन लोगों के खिलाफ भी खड़े होने का है जो भारत तेरे टुकड़े होंगे….नारे लगाने वालों को बचाने वाली कतार में खड़े हो जाते हैं। कश्मीर में पेलेट गन के इस्तेमाल पर कुछ छद्म धर्मनिरपेक्ष शक्तियों ने हाहाकार मचा दिया था। सेना पर पत्थरबाजी कर रहे लोगों को मासूम बताया गया था और सेना को आतताई। ये वो दुश्मन हैं जो सीमा पार के दुश्मन से ज्यादा घातक हैं। खतरनाक हैं। याद होगा जब एक पत्थरबाज को सेना ने अपनी जीप पर बांधकर घुमाया था तो हमारे ही देश के कुछ तथा कथित बुद्धिजीवि लोग सेना के खिलाफ खड़े हो गए थे। इन लोगों ने एक मुहिम चला दी सेना के खिलाफ। ये वो शक्तियां हैं जो विदेशी ताकतों के इशारे पर काम करती हैं। उनके यहां काम कर रहे एनजीओ के लिए काम करती हैं। अब समय ताकत दिखाने का है। कुछ कर गुजरने का है। बातचीत से मसला हल नहीं होगा। देश को और देश के हरेक नागरिक को एक साथ खड़ा होना होगा। तर्क वितर्क का समय बीत चुका है। पानी सिर के पर से बह चुका है। कब तक मौन और खामोश रहेंगे हम। कब तक धैर्य की परीक्षा देते रहेंगे। अब निंदा नहीं चाहिए। एक भी आतंकी जिंदा नहीं बचना चाहिए …यह देश की पुकार है। यही एक आवाज है। और हां मानवाधिकारों की भी भरपूर चिंता करें …लेकिन शहीदों के परिवारों के लिए। सैनिकों के लिए…। जय हिन्द …जय भारत….।