[जल संचयन के आदर्श श्रोत गांव के ताल तलैय्या भी हो रहे जल विहीन]

[पुरखो के पोखर पर शंकट]
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
[जितेंद्र यादव-ब्यूरो रिपोर्ट]
■■■■■■■■■■■■
रुदौली(फैजाबाद)-:
============कहा जाता है कि जहां संवेदना ही मर जाए तो वहां कुछ बचने की उम्मीद नहीं की जा सकती।यह स्थिति गांवों में पानी के परंपरागत तालाबों की है।पहले गांवों में लोग ताल-तालाबों के निर्माण तथा उसके रखरखाव के लिए काम करते थे।मगर आज भौतिकता के पीछे दीवाने हुए जमाने में यह सब बात गुजरे जमाने की होकर रह गई है।लोगों की संवेदना मरी और इसका असर गांवों के इन जलश्रोतों पर यह पड़ी कि गांव के ताल-तालाब मरने लगे हैं।ताल-तालाबों को लेकर इस मर रही संवेदना में सबकी भागीदारी लगभग बराबरी की है।यह संवेदना न तो आम लोगों में रही और न ही सरकारी संस्थानों में निचले स्तर पर जनता का वोट हासिल करके जनप्रतिनिधि बनने वालों में भी ताल-तालाबों को पुनर्जीवित करने की संवेदना के बजाय पक्के काम के प्रति अधिक जागरूक दिखते हैं।ग्रामीण इलाकों में ताल-तालाबों के मरने का साइड इफेक्ट यह दिखता है कि कुएं तथा हैंडपम्प में ही फेल हो रहे हैं।इसके अलावे सिंचाई के परंपरागत साधन भी बेकार हो रहे हैं और पशुओं के पीने के पानी की समस्या खड़ी हो रही है।अधिकांश गांव में तालाब सूखे पड़ें हैं।उनके अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है।जिससे भूगर्भ का जलस्तर भी गिरता जा रहा है, जो भविष्य के लिये एक गम्भीर समस्या बनकर सामने आयेगी।ऐसे सूखे पड़े जलाशयों में बच्चे क्रिकेट मैदान बनाकर खेल रहे हैं।और दिन भर तालाबो में चौके छक्के लगते है।सूखे तालाबों से धूल उड़ती है।पशु पक्षियों के लिये एक बूंद भी तालाबों में पानी नहीं है जिससे पशु पक्षी व मवेशी प्यासे भटक रहे हैं।
[अतिक्रमण है बड़ी समस्या]
ताल-तालाबों के मरने के पीछे सबसे बड़ा कारण अतिक्रमण है।आज लोग अपने निजी तथा क्षणिक हित के लिए गांवों के तालाब-पोखरों का अतिक्रमण कर रहे हैं।इससे मुट्ठी भर लोगों को फायदे के अलावे बहुसंख्यक लोगों को परेशानी झेलनी पड़ रही है।लोग तालाबों को अतिक्रमित करने के साथ इसके जल श्रोतों को भी कब्जा करने में नहीं हिचक रहे हैं।इससे फायदा मुश्किल से कुछ क्षणिक लोगों को हो रहा है।मगर इसका दुष्परिणाम 95 प्रतिशत लोगों को भुगतना पड़ रहा है।इसका असर गांवों की खेती के साथ पशुओं पर भी पड़ रहा है ।
[पशुओं के पानी-पीने की समस्या]
गांव में ताल-तालाबों के विलुप्त होने से आम लोगों के साथ बेजुवान पशुओं को भी इसकी पीड़ा सहनी पड़ रही है।गावों का अधिकांश पोखर मर रहा है।इसमें पानी मुश्किल से तीन महीने ही रहता है।पहले गांव की एक पोखर में आस-पास के आधा दर्जन गांवों के पशुओं को गर्मीं में नहलाने तथा पानी पिलाने का काम होता था । मगर अब स्थिति यह है कि यहां चिड़ियां के भी स्नान करने का पानी नहीं है । इससे आम लोग परेशान हैं।
[सिंचाई भी हो रही प्रभावित]
गांवों में ताल-तालाबों के सूखने से खेतों की सिंचाई भी प्रभावित हो रही है।किसान शिवकुमार यादव इन्द्रसेन यादव, बलराम सिंह , ओमकार आदि ग्रामीणों का कहना है कि पहले तालाबों से किसान सैकड़ों एकड़ फसल की सिंचाई भी कर लेता था।मगर अब तो हालत यह है कि खुद इस तालाब के सीने ही फटे हुए हैं।तालाबों के खत्म होने से खेती की पैदावार पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।पहले इन्ही तालाबों से खेतों को पानी मिलता था।क्योंकि उस समय ज्यादा बोरिंग व सिंचाई के साधन नहीं थे।मगर अब तो यह तालाब खुद प्यासे है तो खेतों को पानी कहां से मिलेगा ।
[जिम्मेदार लोग भी संवेदनहीन हो गए]
गांवों में ताल-तालाबों के संरक्षण तथा इसके बचाव की जिम्मेदारी लेने वाले ही इस मसले पर संवेदनहीन बने हैं । स्थानीय लोग कहते हैं कि पिछले दस वर्षों में पोखर की बहुत ही दुर्दशा हुई है । बेमौत मर रहे पोखर-तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए स्थानीय लोगों के जनप्रतिनिधि से लेकर प्रशासनिक अधिकारी तक जिम्मेदारी से कम करें तो मरते पोखर-तालाबों में फिर जान आ सकती है । लेकिन जिम्मेदार लोगों एवं प्रशासनिक पहल के बिना पोखर व तालाबों को बचाया नहीं जा सकता है।इस मामले में लोगों में जागरूकता की जरुरत है।
