पूर्व सैनिकों की हेल्थ स्कीम में करीब 500 करोड़ रुपये के घोटाले का साया

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  • हॉस्पिटल भेज रहे हैं फर्जी बिल, बचाव में कई ब्यूरोक्रेट्स और राजनेता भी शामिल
  • कुल बिल में से 16-20 पर्सेंट बिल फर्जी, इसमें हो सकता है करोड़ो का घोटाला
  • कई निजी अस्पतालों को करप्ट प्रैक्टिस की वजह से ECHS पैनल से बाहर करने की सिफारिश
  • गुड़गांव के एक बड़े और जाने माने हॉस्पिटल के 24% बिल गलत पाए गए

नई दिल्ली
पूर्व सैनिकों और उनके परिवार वालों के लिए बनी हेल्थ स्कीम एक्स सर्विसमैन कॉन्ट्रिब्यूट्री हेल्थ स्कीम (ईसीएचएस) में लगातार फर्जी बिल आ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक साल में अलग-अलग हॉस्पिटल से ईसीएचएस के पास जितने बिल आ रहे हैं उनमें से 16-20 पर्सेंट बिल गलत पाए गए हैं। पिछले साल के ही करीब 500 करोड़ रुपये के बिल या तो फर्जी हैं या उस ट्रीटमेंट का भी बिल जोड़ दिया गया है जो ट्रीटमेंट किया ही नहीं गया। इसमें बिल को बढ़ा कर देने के मामले के साथ ही बिना जरूरत के ही पेशंट को एडमिट करने के भी मामले भी हैं।
सूत्रों के मुताबिक आर्मी की तरफ से कई बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल को करप्ट प्रैक्टिस की वजह से ईसीएचएस पैनल से बाहर करने की सिफारिश की गई थी लेकिन बाहरी दबाव की वजह से उन पर ऐक्शन नहीं लिया जा सका है। सूत्रों का कहना है कि इस करप्ट प्रैक्टिस की जानकारी आर्मी के साथ ही रक्षा मंत्रालय को भी है। सूत्रों का कहना है कि डिपार्टमेंट ऑफ एक्स सर्विसमैन वेलफेयर में गड़बड़ी की बातें सामने आई हैं।
ईसीएचएस पूर्व सैनिकों और उनके परिवार वालों के लिए कैशफ्री हेल्थ स्कीम है। इसके करीब 52 लाख लाभार्थी हैं और देश भर में 2000 से ज्यादा हॉस्पिटल इंपेनल्ड हैं। सूत्रों के मुताबिक लगातार कई हॉस्पिटल्स की तरफ से फर्जी बिल, बढ़े हुए बिल और बिना इलाज किए ही बिल भेजने के मामले सामने आए हैं। ऐसे हॉस्पिटल पर जांच के बाद कार्रवाई की सिफारिश भी की गई लेकिन डिपार्टमेंट ऑफ एक्स सर्विसमैन वेलफेयर के अधिकारियों और कुछ राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से सारे सबूत होने और जांच के दौरान अनियमितता पाए जाने के बावजूद इन पर कार्रवाई नहीं की जा सकी है
सूत्रों के मुताबिक मेरठ, नोएडा और पानीपत के कुछ हॉस्पिटल के खिलाफ डीइंपैनल्मेंट (पैनल से बाहर करना) की कार्रवाई आर्मी की तरफ से शुरू की गई थी लेकिन मंत्रालय के कुछ सीनियर अधिकारियों ने इसमें हस्तक्षेप किया। मेरठ के एक केस में आर्मी के मेजर जनरल लेवल के एक अधिकारी ने जांच की और डीइंपैनलमेंट की सिफारिश की लेकिन इसे भी रोक लिया गया। करप्ट प्रैक्टिस की शिकायत पर मेरठ के एक हॉस्पिटल की मेरठ हेडक्वॉर्टर ने जांच की और पिछले साल 8 अगस्त को मंत्रालय की तरफ से इंस्पेक्शन हुआ।
29 अगस्त को कंपीटेंट बोर्ड ऑफ ऑफिसर्स (डॉक्टर्स की टीम) ने फिर से इंस्पेक्शन किया। बोर्ड ने कहा कि यह हॉस्पिटल इंपैनलमेंट के लिए अनफिट है और इस सिफारिश को जीओसी ने भी अप्रूव किया। केस नवंबर 2018 में आगे बढ़ा और इंपैनलमेंट सेक्शन की तरफ से मंत्रालय को पत्र भेजा गया लेकिन कुछ हुआ नहीं। नोएडा के एक बड़े हॉस्पिटल के केस में एक पूर्व मुख्यमंत्री मंत्रालय आए और हॉस्पिटल के इंपैनलमेंट को खत्म की प्रक्रिया रोकने की कोशिश की। जांच में पाया गया था कि उस हॉस्पिटल ने बिल बढ़ा कर और गलत बिल भेजे हैं। गुड़गांव के एक बड़े और जाने माने हॉस्पिटल के 24% बिल गलत पाए गए। दिल्ली के एक नामी हॉस्पिटल के 17 पर्सेंट बिल गलत मिले।
सूत्रों के मुताबिक मंत्रालय और आर्मी दोनों को ही इस करप्ट प्रैक्टिस का पता है लेकिन जांच को रोकने या प्रभावित करने के लिए कई बाहरी दबाव हैं। सूत्रों के मुताबिक जांच करने वाले अधिकारियों को भी कई तरह से प्रभावित करने की शिकायतें हैं। करप्शन के 61 पर्सेंट केस दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़ से हैं। इनमें 35 पर्सेंट केस कार्डियॉलजी, ऑर्थोपेडिक और आंखों से जुड़े इलाज के हैं क्योंकि इसमें इलाज को चैलेंज करना मुश्किल होता है।

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