October 4, 2024

गोमती रिवर फ्रंट घोटाला: कैग रिपोर्ट में बड़ा खुलासा, अखिलेश सरकार ने बिना विज्ञापन निकाले ही बाँट दिए थे टेंडर

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लखनऊ:भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की ओर से 31 मार्च 2017 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष के लिए पेश की गई रिपोर्ट में सपा सरकार की बहुचर्चित गोमती रिवर फ्रंट परियोजना में बड़ी अनियमितताओं का खुलासा हुआ है. रिपोर्ट में परियोजना के तहत कराए गए कार्यों एवं टेंडर प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं.

लखनऊ में गोमती नदी पर विश्व स्तरीय रिवर फ्रंट विकसित करने के लिए 656.58 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर मार्च 2015 में तत्कालीन सपा सरकार ने परियोजना को मंजूरी दी थी. परियोजना की लागत जून 2016 में इस लक्ष्य के साथ संशोधित करके 1513.32 करोड़ रुपये की गई कि इसे मार्च 2017 में पूरा किया जाना है. कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सितंबर 2017 तक 1447.84 करोड़ रुपये खर्च कर दिया गया लेकिन अपूर्ण है.

कूटरचना कर फर्मों से हुआ अनुबंध

कैग ने परियोजना से संबंधित टेंडर के प्रकाशन के लिए अधिशासी अभियंता लखनऊ खंड शारदा नहर और अधीक्षण अभियंता (सप्तम एवं द्वादशम् मंडल) की ओर से निदेशक सूचना के बीच हुए पत्राचार की जांच की तो चौंकाने वाली जानकारी मिली. कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि परियोजना से संबंधित 662.58 करोड़ रुपये लागत की 23 टेंडर आमंत्रण सूचनाओं को सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा समाचार पत्रों में प्रकाशित ही नहीं किया गया था. इस प्रकार स्पष्ट है कि समाचार पत्रों में निविदा आमंत्रण सूचनाओं को प्रकाशित करने के साक्ष्यों की कूटरचना विशिष्ट फर्मों के लिए अनुबंध करने के लिए की गई थीं.

अपात्र फर्म को दे दिया टेंडर

परियोजना में डायाफ्राम वाल के निर्माण का टेंडर देने में भी अनियमितता पकड़ी गई है. अधीक्षण अभियंता द्वादशम् मंडल ने 516.73 करोड़ रुपये की लागत से डायाफ्राम वाल के निर्माण का कार्य मेसर्स गैमन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को दिया था. कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि फरवरी 2015 में अधीक्षण अभियंता ने टेंडर आमंत्रण सूचना जारी करने के बाद मार्च 2015 में शुद्धिपत्र जारी कर दिया, जिसमें अर्हता संबंधी मापदंडों को कम कर दिया गया.

यह वित्त विभाग के निर्देशों और केंद्रीय सतर्कता आयोग के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन था. कैग ने कहा है कि मूल निविदा अर्हता मानदंडों के अनुसार गैमन इंडिया अपात्र था. गैमन इंडिया शिथिल मानदंडों के अनुसार भी अपात्र था, क्योंकि उनके पास हाइड्रोलिक संरचनाओं में भी अपेक्षित विशेज्ञता नहीं थी. इंटरसेप्टिंग ट्रंक ड्रेन अनुबंध और रबर डैम के निर्माण से संबंधित टेंडर प्रक्रिया में भी अनिमितता की गई.

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