आपकी जान से कीमती है रेलवे का 50 रु. का मग, तभी तो यात्रियों की सुरक्षा पर नहीं देता ध्यान

पटनाः सीमांचल एक्सप्रेस हादसे के बाद रेलवे की रोज एक-एक लापरवाही सामने आ रही है। यह हादसा रेलवे के अधिकारियों के लापरवाही के कारण ही हुआ है। रेलवे अपने समान की कीमत अच्छी से समझता है, लेकिन आपकी जान की कीमत उसके आगे कुछ नहीं है। तभी तो रेलवे एसी बोगी में टॉयलेट में मग तो रखता है, लेकिन वह जंजीर में बांधकर, क्योंकि वह अपने हर चीज की कीमत समझता है, लेकिन जो यात्री ट्रेन से यात्रा करते हैं, पैसा देते हैं। फिर भी रेलवे के अधिकारी जान की कीमत नहीं समझते हैं।
देश की लाइफ लाइन है रेलवे
रेलवे देश की लाइफ लाइन है। लाखों लोग रोज सफर करते हैं। इससे करोड़ों की कमाई रेलवे को होती है। इन यात्रियों के पैसे से ही हजारों रेलकर्मी के घर परिवार चलता हैं। अधिकारी लाखों की सैलरी लेते हैं। लेकिन यह अधिकारी इन यात्रियों के जान की कीमत नहीं समझते हैं।
ट्रैक ठीक नहीं तो कैसे लोग करेंगे बुलेट पर भरोसा
देश में 75 प्रतिशत से अधिक ट्रेनों की स्पीड 60-70 किमी प्रति घंटे की रफ्तार होती है। कई जगहों पर यह स्पीड 30-40 भी हो जाती है। क्योंकि वहां पर ट्रैक ठीक नहीं होता है। अब सवाल उठता है कि जब रेलवे अपने 60 की रफ्तार से चलने वाली ट्रेन के ट्रैक ठीक नहीं रख सकता, उसका मेंटेंनस नहीं कर सकता। जिसके कारण यह हादसा हो रहा है तो ऐसे में 350 से अधिक की स्पीड से चलने वाली बुलेट ट्रेन कैसे चला पाएगा और इसके सुरक्षित संचालन पर लोग कैसे भरोसा कर पाएंगे।
क्यों ठीक नहीं होती है ट्रैक
रेलवे में कामचोरों की कमी नहीं है। यही कामचोरी यात्रियों के लिए जानलेवा हो जाती हैं। ट्रैक की देखरेख के लिए गैंगमैंन और इंजीनियरों की रेलवे में फौज होती है। लेकिन यह काम अपने इमानदारी से नहीं करते हैं। रेलवे के अधिकारी गैंगमैंन को अपने घर और सरकारी आवास पर सेवा में लगा देते हैं। अधिकारियों के आदेश के बाद यह मजबूर गैंगमैंन रेलवे ट्रैक छोड़ दूसरे ट्रैक पकड़ लेते हैं और वह साहब के बच्चों की सेवा, घर की साफ-सफाई में लग जाते हैं। ऐसे में गैंगमैंन ट्रैक नहीं देख पाते हैं जिसके कारण हादसा होता है। सीमांचल एक्सप्रेस हादसे में भी यही हुआ है। ट्रैक खराब था। स्थानीय लोगों ने कई बार स्टेशन मास्टर से शिकायत की, लेकिन स्टेशन मास्टर किस नशे में चुर थे कि शिकायत के बाद भी वह ध्यान नहीं दिए। इसका जवाब तो उनको देना ही चाहिए। अधिकारी गैंगमैंन से अपना घर का काम कराते हैं इसकी जानकारी रेलवे को पहले से ही है। तभी तो पिछले साल रेल मंत्री ने आदेश दिया था कि घर पर काम करवाने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई होगी, लेकिन आदेश के बाद भी यह काम जारी है।
आखिर कब तक चलेगा दूसरे के भरोसे पर रेस्क्यू
रेलवे हादसे के बाद समय पर रेस्क्यू नहीं कर पाता हैं। हादसे वाले जगहों के आसपास के लोग ही रेस्क्यू के लिए सबसे पहले पहुंचते हैं। इंसानियत के नाते उनके पास जो संसाधन होता है उससे लोगों की मदद में लग जाते हैं। घायलों को निकालकर हॉस्पिटल पहुंचवाते हैं। लेकिन रेलवे के अधिकारियों को पहुंचने में घंटों लग जाता है। इसका ताजा उदाहरण सीमांचल हादसा है जिसमें हाजीपुर जोन से दुर्घटना स्थल की दूरी करीब 20 किमी की थी, लेकिन अधिकारियों को पहुंचने में 8-9 घंटे लग गए। यही कारण था कि देर से पहुंचने के कारण ही स्थानीय लोगों ने पथराव कर दिया।
