इतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाए नाली में :हिमांशु

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हिमांशु ..संपादकीय
शायद ही दुनिया में कोई जीव होगा जिसे खाना पसंद न हो और हम भारतीय तो भोजन के इतने प्रेमी हैं कि बस खाने का बहाना चाहिए। लेकिन इस भोजन प्रेम के बीच में हम प्राय: कुछ ऐसा करते हैं जो भोजन का अपमान है। शादी हो या कोई पार्टी,पूरी थाली भर लेना और थोड़ा खा कर बाकी फेंक देना आम बात हो गई है। तरह-तरह के व्यंजनों का लुत्फ लेने के नाम पर हम किसी भी व्यंजन का आनंद ठीक से नहीं ले पाते और आखिरकार ढेर सारा भोजन फेंक दिया जाता है।

खाना खाने और फेंकने के बीच में कभी यह ख्याल नहीं आता कि आखिर अन्न का एक दाना तैयार होने में कितनी मेहनत, श्रम, पूंजी लगती है। कड़ी मेहनत और लगन से तैयार अन्न को हम बेदर्दी से फेंक देते हैं। यह अच्छी बात नहीं है। आज के बुफे सिस्टम के दौर में तो यह प्रवृत्ति और तेज हो गई है। खाना जरूरत से ज्यादा लेने के बाद उसे फेंक कर हम गरीबों के मुंह का निवाला भी छीन रहे हैं। आज कृषि उत्पादन और जनसंख्या का अनुपात गड़बड़ा रहा है। अगर हम ऐसे ही अन्न फेंकते रहे तो जल संकट की तरह जल्द ही अन्न संकट का सामना करना पड़ेगा।

अन्न का महत्व समझना है तो किसी भूखे को जूठन से खाना उठाकर खाते देखो। किस तरह वो खाना देखकर उसकी तरफ दौड़ पड़ता है। उसकी भूख उसे इस बात की परवाह नहीं करने देती कि यह भोजन तो किसी की जूठन है। उसे तो बस खाने से मतलब होता है। छोटे- छोटे जीव जंतुओं से अन्न के एक-एक दाने का संग्रहण अन्न की उपयोगिता का पाठ पढ़ाने के लिए पर्याप्त है।

वेदों में अन्न को साक्षात ईश्वर मानते हुए ‘अन्नम् वै ब्रह्म’ लिखा गया है। वैदिक संस्कृति में भोजन मंत्र का प्रावधान है। जिसका सामूहिक रूप से पाठ कर भोजन ग्रहण किया जाता है। हमारे यहा भोजन के दौरान ‘सहनौ भुनक्तु ‘ कहा जाता है, इसके पीछे भावना यह है कि मेरे साथ और मेरे बाद वाला भूखा न रहे। वेदों में ‘ अन्नम् बहु कुर्वीत’ कहा गया है, यानि अन्न अधिक से अधिक उपजाइए। कृषि और ऋषि प्रधान इस देश में अगर हम अन्न का महत्व नहीं समझेंगे तो भविष्य में प्रकृति खुद ही हमें समझा देगी। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक विश्व स्तर पर भोजन के उत्पादन का करीब एक तिहाई हिस्सा बर्बाद हो जाता है। इटली के रोम स्थित संयुक्त राष्ट्र की खाद्य और कृषि संस्था, एफएओ के मुताबिक सालाना करीब एक अरब 30 करोड़ टन अनाज बर्बाद होता है। अगर बर्बाद होने वाले खाने का आधा भी हम बचा सके तो खाद्य उत्पादन में केवल 32 फीसद इजाफा करके ही हम 2050 तक दुनिया की पूरी आबादी के लिए खाना मुहैया करा सकेंगे। मौजूदा हालत में ऐसा करने के लिए हमें खाद्य उत्पादन में 60 फीसद तक इजाफा करना होगा।

हम किसी भी आयु वर्ग के क्यों न हों, कितने भी संपन्न परिवार से क्यों न हों, आज से हमे संकल्प लेना होगा कि हम थाली में जूठन नहीं छोड़ेंगे और दूसरे लोगों को ऐसा करने के लिए प्रेरित करेंगे। भोजन को भूख की बीमारी के लिए दवा के रूप में लिया जाना चाहिए और यह जीवन के लिए जीविका के रूप में है। इसलिए थाली में उतना ही भोजन लो, कि उसे नाली में न फेंकना पडे़।

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