मायावती जी जातिवाद के कुएं में बैठ सागर दर्शन !मज़ाक है ये?

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*मायावती जी जातिवाद के कुएं में बैठ सागर दर्शन !मज़ाक है ये?*

मोदी जी की जाति ना बताइए, करेंगी क्या ?यह दर्शाइए।

कांग्रेस को कोसिये लेकिन अपना कुनबा बचाइए!

अविश्वास का ठप्पा मिटे अब ऐसा कुछ कर दिखाइए?

*कृष्ण कुमार द्विवेदी राजू भैया*

?? जातिवाद के कुएं में बैठकर बसपा सुप्रीमो देश के सत्ता रूपी सागर का दर्शन करना चाहती हैं !भद्दा मजाक ही है ये? फिर मायावती से देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जाति नहीं जानना चाहता वह करेंगी क्या ?यह समझना चाहता है। आज सपा के साथ उनका गठबंधन भले ही हो लेकिन अविश्वासनीयता का जो ठप्पा उन पर है वह कैसे मिटे ?इसकी जुगत भी उन्हें करनी चाहिए।अन्यथा……..

देश की राजनीति में जातिवाद का जहरीला अस्त्र चला कर प्रकट हुई मायावती को वर्षों बाद आज भी भरोसा है कि जातिवाद के हथियारों से अभी भी सत्ता को प्राप्त किया जा सकता है। यही वजह है कि जब भी वो सियासी मंच पर होती है, अथवा बोलती है तब उनकी बात में जात एवं जाति की रट लगती ही नजर आती है? शायद वह सोचने और समझने को तैयार ही नहीं है कि अब देश की राजनीति ने दूसरी करवट ले रखी है !जातिवाद का जहर एकदम से खत्म तो नहीं हुआ है फिर भी लोगों ने कुछ नए सिरे से सोचना प्रारंभ कर दिया है।

मायावती ने अभी हाल ही में कहा कि भाजपा नेता देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगड़ी जात से हैं ।उनका जन्म अगड़ी जात में हुआ ।गुजरात में उनकी सरकार थी। उन्होंने उस सरकार का लाभ उठाकर अपनी जाति को पिछड़ी जाति में शामिल करवा लिया। ताकि पिछड़े वर्ग के होने का लाभ उठा सकें। माया के मायावी तीर यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने कहा कि जन्मजात पिछड़े वर्ग के नेता सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव एवं सपा अखिलेश यादव है।

सवाल है कि क्या देश ने बसपा सुप्रीमो से श्री मोदी की जाति क्या है यह पूछा? या देश ने यह पूछा है कि मुलायम सिंह यादव एवं उनके पुत्र अखिलेश यादव जन्मजात पिछड़े वर्ग से है कि नहीं है? कारण स्पष्ट है जातिगत तीर चला कर सत्ता की कुर्सी तक कैसे पहुंचा जाए।यह चिंता उन्हें ज्यादा है।
सर्वविदित यह भी है कि महागठबंधन उत्तर प्रदेश में कितना भी सफल हो जाए लेकिन वह देश की सत्ता पर अपने बलबूते आसीन नहीं हो सकता ।या तो भाजपा के विरोधी दल इस महा गठबंधन के पीछे खड़े हो?चर्चा होती है सपा अथवा बसपा के जीते हुए सांसद आगे कांग्रेश के पीछे लटक जाएंगे अथवा भाजपा के पीछे? गौरतलब यह है कि देश में इतना बदलाव है फिर भी माया को जातिगत राजनीति में ही सत्ता की महामाया नजर आ रही है ।उन्हें सियासी मंच पर खड़े होकर के कम से कम देश को यह तो बताना चाहिए कि वह करेंगी क्या !उनके महागठबंधन का विजन क्या है, उनकी नीतियों से देश को कैसे विकास में गति मिलेगी ,वह देशवासियों को अच्छा जीवन मिले उसके लिए उनके पास उपाय क्या हैं। लेकिन शायद वह यह नहीं बताना चाहती। हो सकता है कि उनकी अंदरूनी योजना हो कि जैसे तैसे हमारे इतने साथी चुनाव जीत जाएं जिससे कि यदि मौका मिले तो देश में सरकार के गठन के समय अच्छी सौदेबाजी की जा सके?

बसपा सुप्रीमो गेस्ट हाउस कांड को बिल्कुल भुला चुकी है।! सूत्र बताते हैं कि वह माया जी हैं वह भूलती कुछ नहीं है ।वक्त का तकाजा था सपा से गठबंधन जरूरी था। क्योंकि बीते लोकसभा चुनाव एवं विधानसभा चुनाव में प्रदेश की राजनीति में बसपा को सबसे ज्यादा झटका लगा है। सपा ने तो अपने आप को कुछ हद तक संभाल भी लिया था ।आज सपा एवं बसपा दोनों जानी दुश्मन दोस्त बने हुए हैं। इसकी प्रायः उम्मीद है यह दोस्ती बहुत दिनों तक चलने वाली नहीं है। क्योंकि बसपा सुप्रीमो मायावती को देश की राजनीति में अविश्वासनीय राजनीतिज्ञ माना जाता है? उन्होंने अब तक जितने भी राजनीतिक साथ किए उसके बाद में टूटते ही रहे ।एक चुनौती है मायावती के सामने। उन्हें अखिलेश यादव से अपनी दोस्ती को दूर ले जाना ही होगा। अन्यथा इसके बाद उनके आसपास भी कोई नहीं भटकेगा।

बसपा सुप्रीमो मायावती इस समय सबसे ज्यादा अगर किसी से गुस्सा है वह है कांग्रेस। बसपाई सूत्र बताते हैं कि मायावती जी को कांग्रेस पर नाराजगी इसलिए ज्यादा है क्योंकि बसपा के कई बड़े नेता कांग्रेस में ही शरण पाने में कामयाब हुए हैं ।यही नहीं अभी हाल ही में कई प्रदेशों के चुनाव में कांग्रेस के साथ चुनाव मतदान के दरमियान जो गठबंधन की बात नहीं बनी उसमें भी वह कांग्रेस को दोषी मानती है। यही वजह है कि मायावती अपनी जनसभाओं में कांग्रेस एवं भाजपा को दलितों तथा पिछड़ों का सबसे बड़ा शत्रु करार देती है।

इसके साथ ही एक बात यदि खरी खरी की जाए तो मायावती भले की बात दलितों की करती हो लेकिन उनके रहते देश में उनकी ही पार्टी में कोई दूसरा दलित नेता बढ़कर बड़ा नहीं हो पाया ?जो भी आगे बढ़ा मायावती ने उसे किनारे लगा दिया !बहुजन समाज पार्टी के कई संस्थापक सदस्य मायावती के कोप का भाजन बने।इनमे से की आज कांग्रेसमें है। यही नहीं मायावती की आंख की किरकिरी दूसरे दलों के दलित नेता भी रहते हैं ।जो कहीं न कहीं उच्चतम आभामंडल को प्राप्त हो जाते हैं ।जिसमें बाराबंकी से राज्यसभा सांसद पीएल पुनिया भी शामिल है। चर्चा के मुताबिक मायावती किसी भी हालत में पुनिया को बर्दाश्त नहीं कर पाती। जबकि श्री पुनिया मायावती के सजातीय हैं। एक जमाने में भाजपा के संस्थापक सदस्य संघ प्रिय गौतम से भी उनकी वैचारिक रार थी।
स्पष्ट है कि मायावती को अब सोचना होगा कि देश में राजनीति की आबोहवा बहुत बदल चुकी है। जातिवाद का गाना बेसुरा हो चुका है? अब आज का मतदाता नेता का विजन क्या है। इस पर वोट करता है। बार-बार वही जात पात का गाना, अगड़े- पिछड़े- दलित का राग !!यह सुनकर लोग लगभग ऊब चुके हैं? इसलिए जातिवाद के कुएं में बैठकर केंद्र के सत्तारूपी सागर के दर्शन नहीं हो सकते ।मायावती जी समझना हो समझिए —ना समझना हो न समझो। बाकी आप जाने– जाने आपका काम?????

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