चौपाल परिवार की ओर से आज का प्रातः संदेश -आचार्य अर्जुन तिवारी के मुखारवृन्द से

0

सज्जनों ! सनातन धर्म में नारियों का एक महत्वपूर्ण स्थान है।पत्नी के पातिव्रत धर्म पर पति का जीवन आधारित होता है। प्राचीनकाल में सावित्री जैसी सती हमीं लोगों में से तो थीं जिसने यमराज से लड़कर अपने पति को मरने से बचा लिया था।भगवती पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त कर लिया था। भारत की स्त्रियों की कितनी ही बातें इतिहास में लिखी हुई हैं जिनसे उनकी शक्ति और उनके सुख का पता मिलता है, वह सब उनके पातिव्रत धर्म का ही प्रभाव है।पुराणों में कथा है, महासती अनुसुइया ने अपने पति के कष्ट को देखकर अपने आश्रम के किनारे ही गंगाजी को बुला लिया था, चित्रकूट में आज भी वे गंगाजी मौजूद हैं।जिस पति व्रत धर्म की इतनी महिमा बतलाई जाती है उसे या तो हम समझ नहीं पाती या अपने अज्ञान में इतनी भूली रहती हैं कि सब दुःख सहते रहने पर भी पातिव्रत धर्म रूपी बड़ी भारी दवाई की ओर झाँकती भी नहीं हैं।धर्म के पालन में संस्कारों की जरूरत होती है, इसलिए कन्याओं में इस बात के संस्कार डालने की जरूरत है जिससे पति ही देवता, पति ही गुरु, पति ही धर्म और पति ही कर्म है, वे मानें।बच्चों पर माँ के संस्कारों का असर होता है। माँ जैसे रहती-करती-धरती है बच्चे भी उसी से अपना आचरण बनाते हैं।इसलिए अपनी कन्या का पतिव्रता बनाने के लिए माँ को भी पतिव्रत धर्म पालन करने की जरूरत होती है। माँ के ज्ञानवान होने से धर्म पालन की संभावना होती है।लेकिन कोरा ज्ञान भी अपना कोई असर नहीं करता।ज्ञान को जीवन में लाने या ज्ञान के अनुसार जीवन बनाने पर ही ज्ञानी होने की सार्थकता है।आज हम धर्म का कितना पालन कर रहे हैं यह बताने की आवश्यकता नहीं है।चाहे वह पुरुष समाज को या नारी शक्ति।सभी अपने धर्म से विमुख हुए हैं जिसका परिणाम हमको देखने को भी मिल रहा है। आज की कछ तथाकथित नारियां पातिव्रत धर्म का कितना पालन कर रही हैं यह उनकी आत्मा ही जानती है।मानस में बाबा जी ने चार प्रकार की नारियों का वर्णन किया है।प्रथम , मध्यम , निम्न एवं निकृष्ट। आज नारी समाज को यह विचार करने की आवश्यकता है वे किस श्रेणी में आ रही हैं। हमारे शास्त्रों ने नारियों के लिए एक ही धर्म बताया है।मन वचन कर्म से पति की सेवा करना ही पातिव्रत धर्म कहा गया है।मेरा “आचार्य अर्जुन तिवारी” का मानना है कि पति सेवा , पति की आज्ञा का पालन एवं पति की उन्नति में ही अपनी उन्नति समझना और पति के हित में ही अपना हित मिला देना ।पातिव्रत धर्म में शामिल होता है। जिस कर्म से बंधन टूट जाए उससे मुक्ति मिल जाए वही कर्म है। जो कर्म दुख में घसीट ले जाएं और संसारी बंधन में बांधने लगें वे पथभ्रष्ट भी करने लगते हैं।इसीलिए बड़े-बड़े विद्वान , साधु – सन्यासी , योगी , यती उसे कर्म नहीं मानते हैं ।आज हम सब उसी के विपरीत आचरण कर रहे हैं यही कारण है कि आज मानव समाज दूषित एवं दुखित है।धर्म का पालन करना नारियों के अतिरिक्त पुरुषों के भी कर्तव्य हैं।जहां नर नारी दोनों अपने धर्म का पालन करते हैं वहीं समाज सुखी और समृद्धशाली होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed

error: Content is protected !! © KKC News