इस बार एक विशिष्ट खगोलीय संयोग के चलते शारदीय नवरात्रि 10 दिनों की होगी, नौ वर्षों बाद बन रहा दुर्लभ संयोग
22 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर को होगी विजयादशमी, कई दुर्लभ योगों का भी होगा संयोग

रुदौली (अयोध्या) ! शारदीय नवरात्रि इस वर्ष एक विशिष्ट खगोलीय संयोग के चलते 10 दिनों की होगी, जो एक दुर्लभ धार्मिक अवसर माना जा रहा है। पिछली बार यह संयोग वर्ष 2016 में बना था, जब नवरात्रि 10 दिनों की रही थी। इस बार भी तृतीया तिथि दो दिन रहने के कारण नवरात्रि का समापन 2 अक्टूबर गुरुवार को विजयदशमी के दिन होगा।रुदौली के प्रसिद्ध कथा व्यास बाबा शिवानंद मिश्र के अनुसार, 22 सितंबर से आरंभ हो रही शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की क्रमशः पूजा होगी, लेकिन तृतीया तिथि के दो बार पड़ने से नवरात्रि की अवधि 10 दिनों की हो जाएगी। ऐसा संयोग सामान्यतः वर्षों में एक बार ही आता है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से विशेष संयोग
इस वर्ष नवरात्रि के आरंभ के साथ ही गजकेसरी योग बन रहा है, जो अत्यंत शुभ माना जाता है। यह योग तब बनता है जब गुरु और चंद्रमा केंद्र भाव में एक-दूसरे के सामने स्थित होते हैं। इस बार गुरु (बृहस्पति) मिथुन राशि में चंद्रमा कन्या राशि में गोचर करेंगे, जिससे गजकेसरी राजयोग का निर्माण होगा। यह योग समृद्धि, ज्ञान और धर्म का प्रतीक है।
माता दुर्गा का आगमन हाथी पर, प्रस्थान मनुष्य पर
ज्योतिष गणनाओं के अनुसार, इस बार माता दुर्गा हाथी पर सवार होकर पधारेंगी, जो वर्षा और कृषि समृद्धि का संकेत है। वहीं, माता का प्रस्थान मनुष्य वाहन पर होगा, जिसे सामाजिक सौहार्द, शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।बाबा शिवानंद मिश्र बताते हैं,”जब भी माता का प्रस्थान गुरुवार को होता है, वह अत्यंत शुभ माना जाता है। यह योग बताता है कि समाज में प्रेम, शांति और सहयोग की भावना प्रबल होगी।”
नवरात्रि तिथियाँ (2025)
प्रथम दिन (प्रतिपदा): 22 सितम्बर दशहरा (विजयादशमी) 2 अक्टूबर।इस बार तृतीया तिथि का दो दिन पड़ना ही नवरात्रि को 10 दिनों का बना रहा है। शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि की तिथियाँ चंद्र मास के अनुसार चलती हैं और व्रत/पूजन की गिनती तिथियों पर आधारित होती है, न कि केवल कैलेंडर दिनों पर।
शारदीय नवरात्र का धार्मिक महत्व
शारदीय नवरात्रि को मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना का पर्व माना जाता है,जिसमें नवदुर्गा के नौ रूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री का नाम शामिल है। यह नौ दिन साधना, उपवास, ध्यान और आत्मशुद्धि के होते हैं।ऐसा माना जाता है कि-“जो भक्त नवरात्रि के इन नौ दिनों में मां दुर्गा की सच्ची श्रद्धा से आराधना करता है, मां उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।”
शास्त्रीय प्रमाण एवं उल्लेख
“कालीखण्ड” (दुर्गासप्तशती) में नवरात्रि की तिथियों को लेकर वर्णन है कि यदि तिथियाँ अधिक हो जाएँ तो पर्व की अवधि बढ़ सकती है।”निर्णय सिंधु” ग्रंथ के अनुसार भी यदि द्वितीया या तृतीया तिथि दो दिन रहें तो पर्व की गणना 10 दिनों की हो सकती है।ब्रह्मवैवर्त पुराण में हाथी वाहन को वर्षा और अन्नवृद्धि का प्रतीक बताया गया है।
बाबा शिवानंद मिश्र बताते है,कि नवरात्रि केवल पर्व नहीं,एक साधना है,धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से यह नवरात्रि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। भक्तों के लिए यह समय न केवल व्रत व पूजा का है, बल्कि आत्मचिंतन, संयम और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने का एक सशक्त माध्यम भी है।

